अमेरिकी टेलीविज़न नेटवर्क, द सीडब्ल्यू (The CW) की ऑरिजिनल वेबसीरीज, द 100, जब अपने अंतिम सीजन-7 में पहुँचती है तब पता चलता है कि जिस ‘द लास्ट वार’ को लेकर एक कैरेक्टर, कैडोगन, जिसे शेफर्ड के नाम से पुकारा जा रहा था, वह असल में पिछले लगभग 250 सालों से एक गलत सूचना को लेकर चल रहा था। वह इसी ग़लत सूचना के आधार पर अपनी पत्नी और बच्चों को मरने देता है और हज़ारों आम लोगों को ब्रेनवाश करके तथाकथित ‘लास्ट वार’ के लिए तैयार करता है। उसे कभी पता ही नहीं चला कि वह सैकड़ों सालों तक एक अंधे विचार के पीछे ही भाग रहा था। कमोबेश यही स्थिति आरएसएस के मामले में समझ आती है। जब से आरएसएस का जन्म हुआ तबसे लेकर आजतक उनके दिमाग में यह बात बिठा दी गई कि एक दिन मुसलिमों की जनसंख्या इतनी अधिक हो जाएगी कि वो हिंदुओं को फिर से सत्ता से बाहर कर देंगे। लगभग 97 सालों से यह विचार उनमें एक वैज्ञानिक तथ्य की तरह जगह बना चुका है।
क्या मुसलिमों पर सच में बदल गई है आरएसएस की राय?
- विमर्श
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- 9 Oct, 2022

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने क्यों कहा कि ‘‘जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पंथ आधारित जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती’’? क्या उनका इशारा मुसलिम नहीं थे?
भारत के 17वें मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरेशी ने अपनी किताब ‘द पॉपुलेशन मिथ’ (2021) में इस भ्रम को तथ्यवार ढंग से तोड़ा है। जनसंख्या से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी, UNFPA, भी इसे मिथ करार दे चुका है। स्वयं केंद्र सरकार द्वारा जारी, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 और भारत के रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट आँकड़ों के माध्यम से यह लगातार कह रही है कि मुसलिम जनसंख्या का विवाद, न सिर्फ एक झूठ है बल्कि सच तो यह है कि मुसलमानों की प्रजनन दर में जो गिरावट दर्ज की गई है वह किसी अन्य धर्म में नहीं है।