भारतीय संविधान के अनुच्छेद-87 के अनुसार, आम चुनावों के बाद नई संसद गठित होने पर और प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र की शुरुआत में (जब भी पहली बार निचले सदन अर्थात लोकसभा की बैठक होगी) राष्ट्रपति संसद के दोनो सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करेंगे। 27 जून 2024 को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के इसी प्रावधान के तहत भारत की संसद को संबोधित किया। भले ही यह सम्बोधन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता हो लेकिन इसमें उनकी भूमिका मात्र एक वक्ता की ही होती है। असल में राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार की नीतियों का विवरण होता है, इसलिये अभिभाषण का प्रारूप सरकार द्वारा तैयार किया जाता है। इसीलिए जब भी कभी राष्ट्रपति का सम्बोधन सुनें तो उसे संबंधित केंद्र सरकार की मंत्रिपरिषद से जोड़कर देखना चाहिए। और चूंकि प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का मुखिया होता है इसलिए अच्छा होगा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण को प्रधानमंत्री के विचार, दृष्टिकोण और उनकी योग्यता से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए।
राष्ट्रपति के अभिभाषण ने सरकारी नाकामी को वैधता प्रदान की
- विमर्श
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- 29 Mar, 2025

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का सरकारी भाषण इस रूप में दर्ज किया जाएगा कि आदिवासी महिला राष्ट्रपति ने दलितों, आदिवासियों पर हो रहे शोषण का उल्लेख मौका मिलने पर अपने अभिभाषण में नहीं किया। एक ऐसी राष्ट्रपति के रूप में उन्हें याद रखा जाएगा कि उन्होंने भारतीय मुसलमानों पर हो रहे हमलों, लिंचिंग, बुलडोजर न्याय पर रत्ती भर भी चिन्ता नहीं जताई। सरकार का भाषण जरूर पढ़िए लेकिन उनके अपने सरोकार क्या नहीं हैं। क्या वो अपने सरोकारों को जिक्र इस भाषण में करने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं। स्तंभकार वंदिता मिश्रा का विचारोत्तेजक लेखः