“देश का अधिकांश काला धन नकद के रूप में नहीं है। वास्तव में यह धन गोल्ड और रियल एस्टेट असेट्स के रूप में है। और यह पहल (विमुद्रीकरण) इन असेट्स पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं डालेगी”।
प्रधानमंत्री के शब्द और उनके वादे पर कितना भरोसा करें?
- विमर्श
- |
- |
- 16 Jan, 2022

2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक के बाद एक वादे करते रहे, लेकिन क्या उनमें से कोई पूरा हुआ? क्या उन्होंने पूरे कार्यकाल अपने 'मन की बात' ही की?
यह स्टेटमेंट भारतीय रिजर्व बैंक की 561वीं मीटिंग के मिनट्स का हिस्सा है। यह मीटिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस ऐलान से लगभग ढाई घंटे पहले हुई थी, जिसमें मोदी जी विमुद्रीकरण की घोषणा करने वाले थे।
मोदी जी ने आरबीआई की प्रोफेशनल (पेशेवर) राय को तवज्जो न देकर अपने ‘मन की बात’ पर फोकस करना ज़्यादा उचित समझा। अंततः आरबीआई की राय सच साबित हुई। प्रधानमंत्री जी के ‘मन’ ने जिसे काला धन समझ लिया था उसका 99.9% हिस्सा वास्तव में ‘व्हाइट’ निकला। मोदी जी ने आरबीआई की उस राय को भी अनदेखा कर दिया जिसमें इस क़दम के बाद देश की जीडीपी पर नकारात्मक प्रभाव की चेतावनी शामिल थी। हुआ भी वही जिसका डर था। जो अर्थव्यवस्था 5.2% (2011-12) से 8.3%(2016-17) तक लगातार बढ़ती रही थी वो विमुद्रीकरण के कारण 4% (2019-20) के निम्न स्तर पर पहुँच गई। प्रधानमंत्री द्वारा काले धन को लेकर ढेर सारे वादे किए गए। कभी यह वादा 15 लाख रुपये हर देशवासी के खाते में डालने को लेकर था, तो कभी यह आतंकवाद और भ्रष्टाचार के खात्मे को लेकर जनता के बीच झूठ के रूप में आता रहा।