अधिकारों और आज़ादी में एक प्राकृतिक साम्य है। बिना आज़ादी के अधिकार नहीं मिल सकते और बिना अधिकारों का जीवन वास्तव में एक त्रासदी है। भारत ने ब्रिटिश राज में ऐसी ही अनगिनत त्रासदियाँ झेलीं जिनके पीछे का मुख्य कारण गुलामी से उत्पन्न ‘अधिकार-विहीनता’ थी। त्रासदी के ये उदाहरण आपको और स्पष्टता प्रदान करेंगे- बंगाल अकाल (1770), एक करोड़ भारतीय मारे गए। पंजाब, राजस्थान और उत्तर-पश्चिम प्रान्त में 1837 में आये दुर्भिक्ष से 8 लाख भारतीय मारे गए। 1866-67 के अकाल ने 10 लाख, 1876-78 में 43 लाख और 1877-78 में फिर से 50 लाख भारतीय; ब्रिटिश नीतियों की भेंट चढ़ गए। सत्ता का पेट नहीं भरा था इसलिए 50 लाख और भारतीयों को प्रथम विश्वयुद्ध में ‘क्राउन’ के प्रति अपने ‘कर्त्तव्य’ निभाने के लिए मौत का आमंत्रण दे दिया गया।
क्या मूल अधिकारों में कटौती की जाने वाली है?
- विमर्श
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- 23 Jan, 2022

‘ब्रह्मकुमारीज’ के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने क्या नागरिक अधिकारों को कम करने या ख़त्म करने का संकेत दिया है? उन्होंने क्यों कहा कि 75 साल हम सिर्फ़ अधिकारों की बात कर अपना समय बर्बाद करते रहे?
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री प्रो.अमर्त्य सेन का मानना है कि ब्रिटिश काल में हुई अकाल से संबंधित ज़्यादातर मौतें खाद्यान्न की कमी की वजह से नहीं, बल्कि ‘वितरण में असमानता’ की वजह से हुई थी। अर्थात ब्रिटिश सत्ता ‘समानता के अधिकार’ के प्रति पूर्णतया उदासीन थी। ऐसे ही, इतिहासकार अमरेश मिश्रा का मानना है कि अकेले 1857 के संघर्ष के बाद अगले दस वर्षों में एक करोड़ भारतीयों का क़त्ल किया गया।