प्रधानमंत्री का लगभग हर कार्यक्रम/योजना या विचार वास्तव में पहले से प्रचलित एक अन्य व समानार्थक मामले की ‘अनदेखी’ से जुड़ा होता है। अनदेखी उनके आधारभूत व्यक्तित्व का हिस्सा जान पड़ता है। इस बात के वैसे तो अनगिनत उदाहरण हो सकते हैं लेकिन फिलहाल के लिए हाल के कुछ उदाहरणों पर नजर डाली जा सकती है।
महिला दिवस, 8 मार्च के मौके पर पीएम मोदी ने रसोई गैस के दामों में 100 रुपये कटौती की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि उनकी इस घोषणा से देश के करोड़ों घरों में अच्छा-खासा वित्तीय बोझ कम होगा। मुख्यतया इससे भारत की ‘नारी शक्ति’ को मदद मिलेगी। पीएम का कहना है कि रसोई गैस के दाम कम करने में हमारा उद्देश्य है कि परिवारों को सहारा दिया जा सके और उन्हे बेहतर ‘पर्यावरण’ भी उपलब्ध कराया जा सके। लोकसभा चुनावों के बिल्कुल पहले आई उनकी 100 रुपये की चिंता नई नहीं है।
इससे पहले हाल में हुए विधान सभा चुनावों के पहले भी मोदी सरकार ने रसोई गैस के दामों में 200 रुपये की कमी की थी। अब 1103 रुपये का सिलिन्डर(14.2किग्रा) 803 रुपये में मिलेगा। 100 रुपये कम करके उससे परिवार पर आर्थिक बोझ कम करने की चिंता जताने वाले प्रधानमंत्री सालों तक 1100 रुपये में मिले सिलिन्डर के दाम को ‘अनदेखा’ करना चाहते हैं। जो सिलिन्डर सब्सिडी के साथ जनवरी 2014 में लगभग 400 रुपये की कीमत में था वही सिलिन्डर 1100 पहुँचा दिया गया, लोगों ने इस महंगाई को किस तरह झेला है वही जानते हैं लेकिन पीएम की चिंता झूठी है।
पीएम मोदी सिर्फ ‘अनदेखी’ कर रहे हैं इसके अतिरिक्त कुछ और नहीं। उन्होंने 100 रुपये कम करके पर्यावरण की चिंता जाहिर कर दी लेकिन इस बात की अनदेखी कर दी कि हमेशा प्रदूषण मुक्त रहा उत्तर-पूर्व आज कैसे प्रदूषण की राह पर निकल पड़ा? सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एण्ड क्लीन एयर(CREA) द्वारा पेश किए गए फरवरी 2024 के आँकड़े बता रहे हैं कि पूरा उत्तर पूर्व PM2.5 के बढ़ते स्तर से जूझ रहा है।
अपनी हरी भरी वादियों के लिए प्रसिद्ध मेघालय की हालत यह है कि यहाँ का शहर बर्नीहाट भारत का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है। इसके अतिरिक्त उत्तर पूर्व के 5 अन्य शहर- नलबारी, अगरतला, गुवाहाटी, नगाँव- भी भारत के सबसे ज्यादा प्रदूषित 30 शहरों में शामिल हैं। लेकिन इन सबकी अनदेखी करके प्रधानमंत्री अरुणाचल जाकर उत्तर-पूर्व में ‘अष्टलक्ष्मी’ के विकास की बात करके आते हैं। अपनी और अपनी सरकार की हर नाकामी की अनदेखी करने के मामले में नरेंद्र मोदी का कोई मुकाबला नहीं है।
पर्यावरण के प्रति तथाकथित चिंतित प्रधानमंत्री छतीसगढ़ के हसदेव अरण्य में कटने वाले पेड़ों के बारे में क्यों कुछ नहीं बोलते? पीएम उत्तराखंड में महीनों से चल रहे उस जन आन्दोलन की सुध क्यों नहीं ले रहे हैं जो उत्तराखंड के संवेदनशील पारिस्थितकी(जागेश्वर धाम) को बचाने के लिए जंगल काटने का विरोध कर रहा है? प्रधानमंत्री इसलिए चुप हैं क्योंकि उनकी रणनीति ही है एक घोषणा और योजना के बीच में अन्य ‘जरूरी मुद्दों की अनदेखी’ कर देना।
LPG में 100 रुपये कम करके ‘नारी शक्ति’ का ज्ञान दे रहे भारत के प्रधानमंत्री इस नारी शक्ति नाम के मुहावरे को मणिपुर के मामले में अपनी अनदेखी का शिकार बना लेते हैं। 100 रुपये कम करके महंगाई से जूझ रहे परिवारों और बढ़ती बेरोजगारी से बढ़ती असंतुष्टि और अवसाद को भी अनदेखी का शिकार बना रहे हैं।
वास्तविकता में प्रधानमंत्री अपनी व्यापक ‘अनदेखी की रणनीति’ के बलबूते ही सत्ता में टिके हुए हैं। संदेशखाली पहुंचकर मणिपुर की अनदेखी कर देना, अरुणाचल पहुंचकर काँग्रेस को कोसते हुए लद्दाख में अपनी नाकामी को, चीनी घुसपैठ को, चीनी सैनिकों द्वारा की गई आक्रामक कार्यवाहियोंकी अनदेखी कर देना यह सब उसी बड़े मिशन का हिस्सा है जिसे कमियाँ छिपाने के लिए अनधिकृत रूप में लॉन्च किया गया है।
प्रधानमंत्री 9 मार्च को अरुणाचल प्रदेश में थे, उन्होंने कई प्रोजेक्ट्स लॉन्च किए। यह भी कहा कि काँग्रेस वर्षों तक भ्रष्टाचार में डूबी रही और यहाँ अवसंरचना व सुरक्षा निर्माण का कार्य नहीं किया। हमेशा की तरह पीएम भारत-चीन सीमा पर अपनी तमाम नाकामियों की अनदेखी कर गए। लेकिन उनके ही पार्टी के सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने तो कहा कि पीएम मोदी एक सक्षम प्रधानमंत्री नहीं हैं, साथ ही यह भी कि उनके नेतृत्व में भारत अपनी सीमाओं की रक्षा करने में असफल रहा है और लद्दाख में चीनी सेना की घुसपैठ इसी का उदाहरण है। लेकिन पीएम मोदी इन सबकी अनदेखी करके आगे बढ़ते जा रहे हैं।
काजीरंगा नेशनल पार्क समेत पूरे उत्तर-पूर्व में घूम रहे नरेंद्र मोदी मणिपुर में जाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। 27 फरवरी को इंफाल शहर में एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक का अपहरण कर लिया गया था। घटना के बाद, मणिपुर पुलिस कमांडो ने इंफाल और अन्य क्षेत्रों में प्रतीकात्मक तरीके से "हथियार नीचे" कर विरोध प्रदर्शन किया। इसके बाद फिर से 8 मार्च को थौबल जिले के रहने वाले जूनियर कमीशंड ऑफिसर (जेसीओ) कोनसम खेड़ा सिंह का अज्ञात लोगों ने घर से अपहरण कर लिया। यद्यपि इन्हे बचा लिया गया है लेकिन प्रश्न यह लगातार बना हुआ है कि लगातार मणिपुर अशांत है, इसके बावजूद प्रधानमंत्री न वहाँ जाते हैं न ही वहाँ की चर्चा करते हैं, क्यों? आखिर यह उनकी सरकार की ही नाकामी है कि मणिपुर आज इस हालात में पहुँच गया लेकिन वो इन सबको अनदेखा कर रहे है।
मेरी नजर में प्रधानमंत्री के हर भाषण को एक ‘अनदेखी भाषण’ के रूप में देखा जाना चाहिए। अरुणाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री नेअपने मुँह से अपनी ही तारीफ करते हुए कहा कि "भाजपा ने पिछले पांच वर्षों में जो किया, कांग्रेस को इन उपलब्धियों को पूरा करने में 20 साल लगते।" इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वोत्तर के लिए अपने विजन का हिस्सा पेश करते हुए कहते हैं- “आज, मुझे विकसित पूर्वोत्तर के इस उत्सव में सभी पूर्वोत्तर राज्यों का हिस्सा बनने का अवसर मिला। हमारा दृष्टिकोण पूर्वोत्तर के विकास के लिए 'अष्ट लक्ष्मी' का है। हमारा पूर्वोत्तर दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के साथ व्यापार और पर्यटन के लिए एक मजबूत कड़ी बन रहा है।” लगभग एक साल से जल रहे, अशांत और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बने प्रदेश मणिपुर के बारे में एक शब्द भी अपने मुँह से न निकालना, न ही वहाँ जाकर राज्य के परेशान लोगों को अपना कंधा देना ऊपर से उसी पूर्वोत्तर में अपने खयाली विजन पेश करना क्रूर व्यवहार है।
मणिपुर का इतने दिनों तक अशांत रहना और भारत के अधिकारियों का भी वहाँ सुरक्षित न रह पाना पूरे विश्व में भारत की कमजोरी और लाचारी की ओर संकेत कर रहा है यह उचित नहीं है। जबकि वास्तविक कमी भारत नहीं केंद्र सरकार में बैठे नरेंद्र मोदी की है। उनकी अक्षमताओं के लिए भारत को दोषी क्यों बनना चाहिये? मिशन पाम ऑयल के तहत अरुणाचल में पहली मिल के उद्घाटन पर भी पीएम ने अपनी पीठ थपथपाई और काँग्रेस की आलोचना की। एक बार फिर से उन्होंने इस तथ्य की अनदेखी कर दी कि जब मोदी जी राजनीति में कहीं नहीं थे तब 1986 में तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार ने देश में ‘तेल पर प्रौद्योगिकी मिशन’ की शुरुआत कर दी थी।
यही हाल भ्रष्टाचार के खिलाफ पीएम मोदी की लड़ाई का है। यह लड़ाई विपक्षी दलों के नेताओं और उनके परिवारों को चुनाव के आसपास परेशान करने का टूल मात्र बनकर रह गई है। यदि सच में पीएम भ्रष्टाचार के खिलाफ थोड़ा सा भी गंभीर होते तो हिंडनबर्ग मामले में गौतम अडानी के खिलाफ जांच करवाने की मांग की ‘अनदेखी’ न करते। लगातार संसद उनसे मांग करती रही लेकिन उन्होंने जांच तक करने की हिम्मत नहीं जुटाई। प्रधानमंत्री मोदी ने नीति आयोग और वित्त मंत्रालय की उन अनुशंसाओं की भी अनदेखी कर दी जिन्होंने गौतम अडानी को इतने सारे पोर्ट्स एक साथ देने के खिलाफ अपनी रिपोर्ट दी थी। जबकि ऐसे ही एक मामले में इंडिया गठबंधन के नेता शरद पवार के भतीजे के घर ED का छापा मारा गया उसकी 51 करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली गई। अडानी में ऐसा क्या है कि उस पर लगे आरोपों पर नरेंद्र मोदी अनदेखी कर देते हैं और विपक्षियों में ऐसा क्या है कि ED रेड डालते नहीं थक रही? इसका उत्तर जनता को खोजना है।
लेकिन यह समझना बहुत जटिल नहीं है कि पीएम मोदी की ‘अनदेखी’ सोची समझी हुई एक रणनीति है, हवा में तैरता कोईकागज का टुकड़ा नहीं जिसके लक्ष्य का पता न हो। प्रधानमंत्री पर 2024 के चुनाव के लिए भरोसा कम हो चुका है। भरोसा एक नेता के लिए करेंसी जैसा होता है। जितना भरोसा कम हुआ उतनी की करेंसी की कीमत कम होती जाती है। मोदी जी इस मामले में संभवतया बैंकरप्ट हो चुके हैं। शायद इसीलिए चुनावों से पहले सोशल मीडिया के 5000 प्रभावशाली लोगों को प्रगति मैदान में एक अवॉर्ड शो के बहाने बुलाया गया। जिससे ये लोग, जिनकी पहुँच कई करोड़ लोगों तक है, मोदी की उन ‘गारंटियों’ को पहुँचा सकें जिनपर अब कोई भरोसा नहीं करता है।
भारत के लोग अब पीएम मोदी द्वारा लगातार की जाने वाली ‘अनदेखी’ की अनदेखी करने के लिए तैयार नहीं हैं। हर वो सवाल जिसका मोदी जी ने उत्तर नहीं दिया वो 2024 के चुनावों के समय उनके सामने खड़ा रहेगा, उम्मीद है कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तैयार रहेंगे, क्योंकि जनता तो तैयार है।
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