प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक और गणितज्ञ, रेने डेकार्ट ने अपनी आत्मकथा ‘डिस्कोर्स ऑन द मेथड’ में लिखा है ‘सिर्फ अच्छा दिमाग होना पर्याप्त नहीं। मुख्य बात है उसका अच्छा इस्तेमाल किया जाना।’ डेकार्ट की यह बात संस्थाओं पर भी लागू होती है। सिर्फ़ अच्छी संस्थाएँ होना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है संस्थाओं का बेहतर उपयोग किया जाना।
संस्थागत आपदा के भँवर में भारत!
- विमर्श
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- 27 Feb, 2022

देश में संस्थाएँ क्या अपना ठीक से काम कर रही हैं? क्या रोजगार पर या विदेश मामले में स्पष्ट नीति है? चुनाव आयोग से लेकर क़ानून लागू करने वाली एजेंसियाँ तक अपना दायित्व निभा रही हैं?
भारत इस समय ‘संस्थागत संकट’ के दौर से गुजर रहा है। हर कोई चाहता है कि भारत पहले $5 ट्रिलियन (2024-25) और इसके बाद $10 ट्रिलियन (2030) की अर्थव्यवस्था के अपने स्वप्न को पूरा करे। यह लक्ष्य भारत की गरीबी को कम करने में सहयोग प्रदान करेगा। लेकिन स्वप्न सिर्फ कह देने से तो पूरा नहीं हो सकता। इसके लिए देश की संस्थाओं को सुचारु रूप से संचालित करने की आवश्यकता है। लेकिन दुर्भाग्य से पूरा विश्व, भारत की संस्थाओं में लगातार गिरावट को प्रत्येक क्षेत्र में महसूस कर रहा है।