लोकतंत्र कोई ‘सीढ़ीनुमा’ ढांचा नहीं, बल्कि ऊबड़-खाबड़ किन्तु एक ‘मैदान’ जैसी संरचना है। यह एक असीमित विस्तार वाला अनंत में लिपटा हुआ मैदान है जहां अनगिनत धाराएं अपनी-अपनी रफ्तार से असंख्य दिशाओं में प्रवाहित हैं। यह धाराएं आपस में टकरा भी सकती हैं, मिल भी सकती हैं और यह भी हो सकता है कि दो धाराएं आपस में कभी भी न मिलें। ऐसे में यह जरूरी नहीं कि ऊपर से देखने (टॉप व्यू) पर लोकतंत्र बहुत सुंदर व व्यवस्थित सी संरचना हो लेकिन इतना तो तय है कि लोकतंत्र जैव-विकास की सबसे आवश्यक अभिव्यक्ति है। लेकिन आज के भारत में एक विचारधारा इस असीमित विस्तार वाले मैदान को एक सीढ़ी का आकर देने में लगी हुई है। एक व्यवस्था के रूप में ‘सीढ़ी’, किसी विकास का नहीं बल्कि निरंकुशता, एकाधिकारवाद और उत्तरोत्तर बढ़ती आत्मानुशंसा का प्रतीक है। और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए भारत को इसी ओर धकेल रही है।
विपक्ष पर अघोषित प्रतिबंध लगा दिया गया है
- विमर्श
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- 29 Mar, 2025

भारत में विपक्षी नेताओं को हर तरह से घेरने की कार्रवाई पर दुनियाभर में सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस का बैंक में रखा फंड जब्त कर लिया गया, ताकि पार्टी चुनाव प्रचार तक नहीं कर सके। केजरीवाल अभी भ्रष्ट साबित नहीं हुए हैं। हेमंत सोरेन अभी भ्रष्ट साबित नहीं हुए हैं लेकिन सरकार का आचरण तानाशाही वाला है। स्तंभकार वंदिता मिश्रा ने विपक्षी नेताओं पर एकतरफा कार्रवाई के मुद्दे को इस बार उठाया हैः