सिर्फ हमारे आसपास ही नहीं पूरी दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है और यह बदलाव जलवायु में परिवर्तन की वजह से हो रहा है। आज के जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारक अट्ठारवीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुई औद्योगिक क्रांति का परिणाम है जिसने धीरे धीरे समृद्धि, रोजगार और गरीबी मिटाने के नाम पर पूरी धरती के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है। दुनिया के सारे देश इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं, और यह बातचीत भी आधिकारिक रूप से 1972 के ‘यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेन्स ऑन ह्यूमन एनवायरनमेंट’ से शुरू हुई जो आज पेरिस समझौते(COP21,2015) तक पहुँच चुकी है। लेकिन परिणाम बताते हैं कि सरकारों ने बातें ज्यादा की हैं और काम बहुत कम किए हैं जबकि वक्त बहुत तेजी से हाथ से फिसल रहा है। अब यह मुद्दा आज की पीढ़ी के रहन सहन का नहीं रहा बल्कि अब यह भावी पीढ़ी के अस्तित्व से जुड़ गया है। इसलिए अब जरूरी है कि सभी राष्ट्र और सर्वोच्च अदालतें, पर्यावरण के मुद्दे को गंभीरता से लें और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा, जुमलों/वादों/घोषणाओं आदि के परे जाकर करें।
प्यास से जूझते भारत में पर्यावरण चुनावी मुद्दा नहीं है
- विमर्श
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- 21 Apr, 2024

देश में चुनाव का मौसम है। आम चुनाव एक बड़ा आयोजन होता है और इस बहाने तमाम मुद्दे विभिन्न पार्टियां जनता के बीच लाती हैं। लेकिन भारत में पर्यावरण को लेकर राजनीतिक दल संजीदा नहीं हैं। सत्तारूढ़ पार्टी पर इसकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है। लेकिन उस पार्टी को हिन्दू-मुसलमान करने से ही फुरसत नहीं मिलती। पश्चिम बंगाल के एक एनजीओ ने चुनाव से पहले ग्रीन मेनिफेस्टो जारी किया लेकिन राजनीतिक दलों की आंखें तब भी नहीं खुलीं। पढ़ कर खुद समझिए, क्या कहना चाहती हैं पत्रकार वंदिता मिश्राः