सिर्फ हमारे आसपास ही नहीं पूरी दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है और यह बदलाव जलवायु में परिवर्तन की वजह से हो रहा है। आज के जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारक अट्ठारवीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुई औद्योगिक क्रांति का परिणाम है जिसने धीरे धीरे समृद्धि, रोजगार और गरीबी मिटाने के नाम पर पूरी धरती के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है। दुनिया के सारे देश इस मुद्दे पर बात कर रहे हैं, और यह बातचीत भी आधिकारिक रूप से 1972 के ‘यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेन्स ऑन ह्यूमन एनवायरनमेंट’ से शुरू हुई जो आज पेरिस समझौते(COP21,2015) तक पहुँच चुकी है। लेकिन परिणाम बताते हैं कि सरकारों ने बातें ज्यादा की हैं और काम बहुत कम किए हैं जबकि वक्त बहुत तेजी से हाथ से फिसल रहा है। अब यह मुद्दा आज की पीढ़ी के रहन सहन का नहीं रहा बल्कि अब यह भावी पीढ़ी के अस्तित्व से जुड़ गया है। इसलिए अब जरूरी है कि सभी राष्ट्र और सर्वोच्च अदालतें, पर्यावरण के मुद्दे को गंभीरता से लें और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा, जुमलों/वादों/घोषणाओं आदि के परे जाकर करें।