एक धर्म या उसके धर्माधिकारी किसी अन्य धर्म की जितनी आलोचना करते हैं और उसके ख़त्म होने का जितना आह्वान करते हैं वो ना चाहते हुए भी खुद की असमर्थता और भय का उसी अनुपात में प्रदर्शन करते हैं। वास्तव में किसी अन्य को भयाक्रांत करना स्वयं के भय का पैसिव (निष्क्रिय) प्रदर्शन है। ऐसे ही एक प्रदर्शन का आयोजन हरिद्वार में ‘धर्म संसद’ के नाम से किया गया।