भारत के संविधान में विधायिका को अनुच्छेद-109 (संसद) और अनुच्छेद- 194 (विधानसभा) के तहत विशेषाधिकार प्राप्त हैं। यह विशेषाधिकार इसलिए हैं ताकि विधायिका नागरिकों के मुद्दे उठाने और क़ानून बनाने के दौरान हुए वार्तालाप को लेकर स्वतंत्र महसूस कर सके। 2003 में तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष ने ‘द हिन्दू’ के चार पत्रकारों और एक प्रकाशक के ख़िलाफ़ एक अरेस्ट वारंट सिर्फ़ इसलिए जारी कर दिया था क्योंकि हिन्दू में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. जयललिता के ख़िलाफ़ ऐसा कुछ लिख दिया गया था जो अध्यक्ष महोदय को पसंद नहीं आया।
रमेश कुमार जैसों को सज़ा मिलेगी?
- विमर्श
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- 31 Jan, 2021

कांग्रेस विधायक केआर रमेश कुमार के दुष्कर्म पर दिए गए आपत्तिजनक बयान क्या पुरुषवादी सोच का नतीजा नहीं है? जहाँ पुलिस, प्रशासन, विधायिका और न्यायपालिका में सिर्फ़ पुरुष भरे होंगे वहाँ ऐसी घटनाओं को रोकना क्या आसान होगा?
2017 में कन्नड़ भाषा के दो टैबलॉयड पत्र ‘हाय! बेंगलोर!’ और ‘येल्हंका वॉयस’ के संपादकों के ख़िलाफ़ तत्कालीन विधानसभा स्पीकर के.बी. कोलीवाड ने विशेषाधिकार समिति की अनुशंसा पर एक साल की सज़ा सुना दी। ये नोटिस और अरेस्ट वारंट विधायिका की आलोचना के कारण जारी किये गए थे। इस डर के बावजूद मैं यह कहना चाहती हूँ कि संविधान में दिए गए सदनीय अधिकार माननीय सदस्यों की वाक् स्वातंत्र्य के लिये हैं, न कि वाक्-व्यभिचार के लिए।