किसी लोकतांत्रिक देश की सफलता इस बात पर टिकी होती है कि वहाँ ‘क़ानून के शासन’ पर भरोसा करने वाले लोगों की संख्या बहुमत में है या नहीं। देश में जितने अधिक लोग इसे मानने से इनकार करेंगे देश उतना अधिक अस्थिर होता चला जाएगा। इसीलिए अरस्तू जैसे शुरुआती दार्शनिकों ने भी ‘क़ानून के शासन’ पर बहुत जोर दिया है और कहा कि- ‘संविधान और कानूनों के माध्यम से ही न्याय और व्यवस्था बनाए रखी जा सकती है’। उनका मानना था कि ‘कानून, नैतिकता का पर्याय होना चाहिए’।
कानून के राज में RSS के लाठी डंडे की क्या जरूरत है?
- विमर्श
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- 29 Mar, 2025

देश में कानून का राज है लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत यहां डंडा राज स्थापित करना चाहते हैं। हाल ही में उन्होंने जो प्रवचन दिया है, उसका कुल मतलब यही है। यानी आरएसएस स्वयंसेवक की लाठी के सहारे इस देश को चलाना चाहता है। फिर तो चुनाव और राजनीतिक दलों की भी जरूरत नहीं है। न किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की जरूरत है। संघ के डंडे से देश चलता रहे। इस महान देश में ऐसी अराजक सोच से पता चलता है कि क्यों यह संगठन अंग्रेजों का पिट्ठू था, क्यों ब्रिटिश हुकूमत के लिए काम करता था। पढ़िएः