किसी लोकतांत्रिक देश की सफलता इस बात पर टिकी होती है कि वहाँ ‘क़ानून के शासन’ पर भरोसा करने वाले लोगों की संख्या बहुमत में है या नहीं। देश में जितने अधिक लोग इसे मानने से इनकार करेंगे देश उतना अधिक अस्थिर होता चला जाएगा। इसीलिए अरस्तू जैसे शुरुआती दार्शनिकों ने भी ‘क़ानून के शासन’ पर बहुत जोर दिया है और कहा कि- ‘संविधान और कानूनों के माध्यम से ही न्याय और व्यवस्था बनाए रखी जा सकती है’। उनका मानना था कि ‘कानून, नैतिकता का पर्याय होना चाहिए’।