इतिहास को विकृत करने की, एक नया और फर्ज़ी इतिहास बनाने की जो कोशिशें बीते कुछ दिनों से लगातार चल रही हैं, क्या किस्सों-कहानियों और दास्तानों से उनका जवाब दिया जा सकता है? यह सवाल या ख़याल इस शनिवार हिमांशु वाजपेयी और प्रज्ञा शर्मा की दास्तानगोई सुनते हुए आया। दास्ताने जाने आलम नाम से पेश यह दास्तान अवध के नवाब वाजिद अली शाह की है जिनको लेकर अतीत में बहुत सारे झूठे-सच्चे किस्से बुन दिए गए हैं। मसलन, यह माना जाता है कि वाजिद अली शाह बहुत रंगीन तबीयत वाले अय्याश नवाब थे और इसी अय्याशी की वजह से वे गिरफ़्तार कर लिए गए। लेकिन हिमांशु और प्रज्ञा शर्मा की दास्तान बताती है कि वे नृत्य और संगीत के शौकीन और संरक्षक ज़रूर थे, लेकिन अपनी रियाया का भी पूरा खयाल रखते थे। दूसरी बात यह कि उन्हें कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया था। तीसरी बात यह कि वे अंग्रेज़ों की शर्त मानने को तैयार नहीं थे। चौथी बात, यह दास्तान बताती है कि ब्रिटिश शासन किस बेईमानी और धोखे से भारत में फैला था। नवाब वाजिद अली शाह के ख़िलाफ़ भी कैसी साज़िशें हुईं और उनके अपने लोग उसमें कैसे शरीक थे।
वाजिद अली शाह: सच्ची दास्तानों के आगे कहाँ टिकते हैं झूठे क़िस्से?
- विविध
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- 22 Dec, 2024

ऐसे झ़ूठे क़िस्से क्यों गढ़े गए कि वाजिद अली शाह बहुत रंगीन तबीयत वाले अय्याश नवाब थे और इसी अय्याशी की वजह से वे गिरफ़्तार कर लिए गए? पढ़िए, हिमांशु और प्रज्ञा शर्मा की दास्तान क्या बताती है।
जो सबसे महत्वपूर्ण बात इस दास्तान में उभर कर आई, वह उस गंगा-जमनी तहज़ीब से जुड़ी थी जिसे नवाब वाजिद अली शाह ने और गहराई दी। उन्होंने राधा और कृष्ण की कथा पर नाटक लिखा जिसे उर्दू का पहला नाटक माना जा सकता है, इस नाटक के लिए हिदायतें लिखीं जो उन्हें पहला निर्देशक भी ठहराती हैं और इसके मंचन के लिए उन्होंने प्रेक्षागृह बनवाया जिसे उर्दू का पहला थिएटर कहा जा सकता है। हिमांशु एक दिलचस्प किस्सा यह बताते हैं कि इस नाटक की तैयारी देखते हुए नवाब वाजिद अली शाह कृष्ण का मुकुट देखकर हैरान रह गए- वह सोने और चांदी का प्रभाव पैदा करने के लिए उन दिनों के प्रचलन के मुताबिक़ तांबे और अबरख से तैयार किया गया था। नवाब ने फौरन हुक़्म दिया कि जो दुनिया के बादशाहों का बादशाह है, उसका मुकुट तांबे-अबरख का नहीं हो सकता। इसके बाद ये मुकुट असली रत्नों का बनवाया गया।