महानगरों की ज़िंदगी में अथाह भीड़ के बीच गुज़रना एक यथार्थ है, लेकिन इस भीड़ में भी आदमी अकेला होता है। यहां ख़ामोशी भी है, लेकिन युद्ध के नगाड़ों की गूंज भी सुनाई देती है। मैक्सिको में ड्रग माफ़िया और ग़ायब होने वाले लोग, कोलकाता में अध्यात्म और वर्ग संघर्ष, कोरिया का गृह युद्ध, कुल मिलाकर शहर दर शहर एक ऐसे युद्ध का एहसास होता है, जो मन के अंदर भी है और बाहर के आवरण में भी।