आज़ादी के बाद दलितों के साथ भेदभाव और छुआछूत ख़त्म करने की बात बहुत हुई लेकिन दलित अब भी अंधविश्वास के जाल में फँसे हैं। बांग्ला की मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी ने अपनी कहानी "बायन" में बहुत मार्मिक ढंग से इसका चित्रण किया है। विख्यात निर्देशिका उषा गांगुली ने इस कहानी पर एक शानदार नाटक तैयार किया है जो संवेदनशील आदमी को झकझोर देता है। उषा गांगुली की कोरोना से मृत्यु हो चुकी है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की नाटक मंडली ने नाटक का फिर से मंचन कर एक तरह से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। बायन का शाब्दिक अर्थ है बच्चा खाने वाली औरत। बहुत कुछ हिंदी शब्द "डायन" के जैसा ही।

मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी की कहानी "बायन" के आधार पर उषा गांगुली ने नाटक तैयार किया। जानिए, इस नाटक में दलित की किस वास्तविकता को दिखाया गया है।
बायन कहानी हिंदुओं के डोम जाति में फैले अंधविश्वास पर प्रहार करती है। कहानी की ज़मीन आदिवासी क्षेत्र से है। हिंदू धर्म में आज भी अंतिम संस्कार के लिए डोम से आग लेने की प्रथा है। डोम अछूत माने जाते हैं। लेकिन अंतिम संस्कार उनके दिए आग के बिना नहीं हो सकती है। बच्चों की मौत होने पर उन्हें ज़मीन में दफ़नाने का काम भी डोम करते हैं। कहानी की नायिका चंडी दासी एक डोम की बेटी है।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक