‘हत्या एक आकार की’— यह नाम है ललित सहगल के नाटक का, जो उन्होंने शायद गाँधी जन्म-शताब्दी के बरस 1969 में या उसके दो-एक साल बाद लिखा था। इस पर एक इंग्लिश फ़िल्म भी बनी थी, ‘एट फ़ाइव पास्ट फ़ाइव’।
‘तुमने केवल एक आकार की हत्या की है…मूर्ख।’
- विविध
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- 2 Feb, 2019

ललित सहगल के नाटक ‘हत्या एक आकार की’ का 30 जनवरी को मंचन हुआ। उसी दिन ऐन शहीद दिवस को अलीगढ़ में कुछ हिन्दूसभाइयों ने गाँधी-हत्या को रिएनेक्ट किया। ऐसा क्यों?
नाटक में चार लोग हैं, जो ‘उस’ की हत्या करना चाहते हैं, जिसके सत्य, अहिंसा और सांप्रदायिक सद्भाव के ‘फ़ालतू’, बल्कि ‘ख़तरनाक’ नारों ने हिन्दू राष्ट्र को कमज़ोर कर दिया है, जो ‘क्रांतिकारियों’ की आलोचना करता रहा है; जिसने मौत के डर पर विजय पा ली है, जनता पर ऐसा जादू कर दिया है कि उसे जान से मार कर ही चुप किया जा सकता है।
ये चारों लोग अपने मिशन पर निकलने ही वाले हैं कि उनमें से एक को संदेह होने लगता है कि मिशन सही है या ग़लत? उसे मनाने की तमाम कोशिशें नाकाम हैं क्योंकि वह चाहता है कि किसी को प्राणदंड देने के पहले अपराध और दंड पर गंभीर विचार हो। आख़िरकार तय होता है कि एक मुक़दमे का अभिनय किया जाए। जिसे संदेह है, वह ‘उस अभियुक्त’ के वकील की भूमिका करे, जिसे गोली चलानी है वह ‘सरकारी वकील’ की, तीसरा साथी जज बने, और चौथा बाक़ी बचे सारे रोल निभाए।
पुरुषोत्तम अग्रवाल हिंदी के जाने-माने लेखक और आलोचक हैं। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं अकथ कहानी प्रेम की : कबीर और उनका समय (आलोचना) और नाकोहस (उपन्यास)।