लालकृष्ण आडवाणी ब्लॉग लिख कर बीजेपी और मोदी जनता पार्टी (मोजपा) का फर्क बता रहे हैं। मोजपा में महानेता की तनिक सी भी आलोचना ऐंटी नेशनल होने का पर्याय है, तो आडवाणी जी अपनी भारतीय जनता पार्टी याद कर रहे हैं जिसके विरोधी, विरोधी ही माने जाते थे, ऐंटी नेशनल नहीं। राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी माने जाते थे, दुश्मन नहीं। हालाँकि यह बात सौ फ़ीसदी सच नहीं है।आडवाणीजी की सक्रियता के दिनों में ही स्वयं मैंने अपने घर के दरवाजे पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का आक्रामक जुलूस झेला है, जिसका मुख्य नारा यही था - “ऐंटी नेशनल पुरुषोत्तम अग्रवाल मुर्दाबाद…।”
आडवाणीजी, काश आपने तब राजेन्द्र माथुर साहब की बात सुनी होती…
- विचार
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- 5 Apr, 2019

‘भावनाओं के सवाल’ को बवाल बनाने की कोशिश तो आडवाणीजी की पीढ़ी ने ही शुरू की थी। संविधान की भावना और क़ानूनी प्रक्रियाओं की धज्जियाँ उड़ाने का आरंभ तो आडवाणीजी और उनके समकालीनों ने ही किया था। हाँ, वे लोग इतना “साहस (या दुस्साहस)” नहीं जुटा पाए थे कि मर्यादा, प्रक्रिया को ही नहीं सामान्य शिष्टाचार को भी ठेंगा दिखा दें।
पुरुषोत्तम अग्रवाल हिंदी के जाने-माने लेखक और आलोचक हैं। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं अकथ कहानी प्रेम की : कबीर और उनका समय (आलोचना) और नाकोहस (उपन्यास)।