नाटक अमूमन किसी व्यक्ति या लोगों पर केंद्रित कथा को लेकर होता है। नाटकीय युक्ति से ये कथा जब मंच पर अभिनय के साथ पेश की जाती हैं जो उनको नाटक कहते हैं। लेकिन समय के साथ विधाओं का चरित्र भी बदलता है और जिन चीजों के बारे में माना जाता रहा है कि उन पर नाटक नहीं हो सकते वे भी अब मंच पर पेश की जा रही हैं। संक्षेप में कहें तो रंगमंच की परिधि का विस्तार हो रहा है। इसलिए अब निबंध या किसी विमर्शात्मक लेख को भी नाटक के रूप में दर्शकों के सामने रखा जा सकता है। कुछ संबंधित कहानियों या वाकयों का उल्लेख करते हुए। वैसे हर दौर में प्रयोग होते रहे हैं और इसी कारण नाटक नाम की विधा के नए नए आयाम भी विकसित होते रहे हैं।पिछले हफ्ते इंडिया हैबिटेट सेंटर में खेला गया नाटक `चाय कहानी’ इसी तरह का एक अभिनव प्रयोग था। ये सारा नाटक चाय पर केंद्रित था। लेकिन सिर्फ चाय नाम के पेय पर नहीं था बल्कि इसी बहाने भारत में रस चिंतन की परंपरा में उल्लखित नौ रसों की धारणा को भी इसमें मिश्रित किया गया गया। आजकल कला में हाईब्रिडिटी की बहुत चर्चा होती है। इसे हिंदी में संकरता कहते हैं। संकरता दो या दो से अधिक अंसबद्ध दिखती चीजों का मिश्रण है। लेकिन मिश्रण हो जाने के बाद एक नया रस सामने आता है। इस नाटक में भी ऐसा ही हुआ।