उत्तराखंड के चंपावत जिले के एक सरकारी स्कूल में दलित भोजन माता के हाथ से बना खाना ना खाने के मामले में अहम घटनाक्रम हुआ है। स्कूल में दलित भोजन माता को फिर से नियुक्त किया गया है। यह सारा विवाद बेहद चर्चा में रहा था क्योंकि सामान्य वर्ग के छात्रों ने दलित भोजन माता के हाथ से बना खाना खाने से इंकार कर दिया था।
इसके बाद दलित वर्ग के छात्रों ने भी सामान्य वर्ग की भोजन माता के हाथों बना खाना खाने से मना कर दिया था। पुलिस ने इस मामले में 31 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है जिसमें 6 लोग नामजद हैं।
विवाद बढ़ने के बाद राज्य सरकार ने इस मामले में जांच का आदेश दिया था। शुक्रवार को स्कूल की प्रबंधक कमेटी की बैठक हुई जिसमें चंपावत के मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी पुरोहित ने कहा कि सरकार ने सुनीता देवी को फिर से इस पद पर नियुक्त करने का फैसला किया है।
क्या है पूरा मामला?
उत्तराखंड सरकार ने सूखीढांग गांव के सरकारी स्कूल में सुनीता देवी नाम की महिला को भोजन माता के रूप में नियुक्त किया था। भोजन माता स्कूल में आने वाले बच्चों के लिए भोजन बनाने का काम करती हैं। सुनीता को इस पद पर सिर्फ़ 3 हज़ार रुपये में नियुक्त किया गया था।
पहले दिन तो स्कूल के बच्चों ने खाना खा लिया लेकिन अगले दिन सामान्य समुदाय के बच्चों ने सुनीता के हाथों से बना खाना खाने से इनकार कर दिया और वे अपने घर से खाना बनाकर लाने लगे।
इतना ही नहीं सुनीता की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए जाने लगे। गांव वाले स्कूल पहुंच गए और सुनीता को इस पद से हटाने का दबाव बनाने लगे।
सुनीता ने कहा कि सामान्य समुदाय के बच्चों के माता-पिता ने उन्हें इतना अपमानित किया कि वह वापस नौकरी में जाने की हिम्मत नहीं जुटा सकीं। उन्हें इस बात का भी डर है कि कहीं उनकी नियुक्ति को अवैध न घोषित कर दिया जाए।
जबकि स्कूल की ओर से कहा गया है कि सुनीता की नियुक्ति नियमों के हिसाब से ही हुई है।
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