उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता के लिए नियम बनाने वाली समिति ने अपनी चर्चा पूरी कर ली है और वह अपने सुझाव पुस्तिका के रूप में मुख्यमंत्री को सौंपेगी। अगर इसे स्वीकार कर लिया जाता है तो 9 नवंबर से पहले राज्य में समान नागरिक संहिता लागू हो सकती है। उत्तराखंड विधानसभा ने फरवरी में समान नागरिक संहिता विधेयक पारित किया था। 13 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विधेयक पर हस्ताक्षर किए। उत्तराखंड इसे लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन सकता है।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के लिए नियम बनाने वाली समिति ने सोमवार को अपनी अंतिम बैठक में विवाह और लिव-इन पंजीकरण, वसीयत के दस्तावेजीकरण और संशोधन के लिए डिजिटल सुविधाएं देने की सिफारिश की है। नियम निर्माण और कार्यान्वयन समिति ने फरवरी में अपनी स्थापना के बाद से अपनी उप-समितियों के साथ 130 से अधिक बैठकें की हैं।
पिछले महीने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि राज्य सरकार 9 नवंबर से पहले समान नागरिक संहिता लागू कर देगी, जो उत्तराखंड का स्थापना दिवस है। समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी नागरिकों - चाहे वे किसी भी धर्म के हों - को विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने और अन्य व्यक्तिगत मामलों के लिए समान नियमों का पालन करना होगा।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार समिति के सदस्यों ने बताया कि समिति ने 500 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की है और इसे जल्द ही राज्य सरकार को सौंप दिया जाएगा। सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और समिति के प्रमुख शत्रुघ्न सिंह ने कहा कि उन्होंने सिफारिश की है कि विवाह पंजीकरण के लिए संबंधित प्राधिकारी उप-पंजीयक या ग्राम पंचायत विकास अधिकारी हो, जो गांवों में जन्म और मृत्यु पंजीकरण के लिए जिम्मेदार हो।
रिपोर्ट के अनुसार पैनल के सदस्यों ने बताया कि डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन के लिए एक वेबसाइट और मोबाइल ऐप पहले से ही तैयार है और इसे संबंधित सरकारी वेबसाइटों और डेटाबेस से जोड़ा जाएगा। यूसीसी लागू होने के बाद वे चालू हो जाएंगे।
उत्तराखंड विधानसभा ने इस साल फरवरी में यूसीसी विधेयक पारित किया, जिसमें विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और लिव-इन रिलेशनशिप से संबंधित कानून शामिल हैं। इसके बाद, यूसीसी के प्रावधानों को कैसे लागू किया जाएगा, यह परिभाषित करने के लिए नियम बनाने और कार्यान्वयन समिति की स्थापना की गई।
यह विधेयक लड़कियों के लिए एक समान और उच्च विवाह योग्य आयु निर्धारित करेगा, मुस्लिम महिलाओं को गोद लेने का अधिकार देगा, हलाला और इद्दत (तलाक या पति की मृत्यु के बाद महिलाओं को जो इस्लामी प्रथाएँ अपनानी पड़ती हैं) जैसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाएगा, लिव-इन संबंधों की घोषणा को बढ़ावा देगा और गोद लेने की प्रक्रियाओं को सरल बनाएगा।
इस विधेयक में जनसंख्या नियंत्रण उपायों और अनुसूचित जनजातियों को शामिल नहीं किया गया है, जो उत्तराखंड की आबादी का 3 प्रतिशत हैं। सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में सरकार द्वारा नियुक्त पैनल ने कई सिफारिशों वाली चार-खंड, 749-पृष्ठ की रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया था।
बीजेपी शासित अन्य राज्य भी नागरिक संहिता को लागू करने की उम्मीद कर रहे हैं। राजस्थान ने कहा है कि वह अगले विधानसभा सत्र में यूसीसी विधेयक पेश करना चाहता है।
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