संभल में मुसलमानों पर कथित पुलिस फायरिंग से ध्यान भटकाने के लिए यूपी में सत्तारूढ़ भाजपा ने हिंसक घटना को जातिगत कोण दे दिया है। रविवार 24 नवंबर को हुई इस हिंसा में पांच लोगों की जान चली गई और सैकड़ों मुस्लिम गिरफ्तार कर लिए गए। पुलिस और उसके प्रशासन को दोषमुक्त करते हुए और पूरी तरह से मुस्लिम समुदाय पर दोष मढ़ते हुए, भाजपा ने उस हिंसा को दो मुस्लिम समुदायों, तुर्क और पठान के बीच लंबे समय से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता के रूप में पेश करने की कोशिश की है।
बीजेपी की इस कहानी को हिन्दी मीडिया के एक बड़े वर्ग ने हवा दी और दोहराया। बीजेपी और हिन्दी मीडिया के मुताबिक मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान गोलीबारी की घटना संभल में तुर्क और पठान से संबंधित दो राजनीतिक परिवारों के बीच वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा थी।
पूर्व सांसद शफीक-उर-रहमान बर्क और पूर्व विधायक नवाब महमूद हसन खान के परिवार आजादी के बाद से एक-दूसरे के खिलाफ कई चुनाव लड़ चुके हैं। बर्क परिवार तुर्क समुदाय से है, जो तुर्कों के वंशज हैं, जबकि खान पठान हैं। संभल से वर्तमान संसद सदस्य, जिया-उर-रहमान बर्क, शफीक-उर-रहमान के पोते हैं, जबकि खान के बेटे इकबाल महमूद संभल विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं, इस सीट पर उन्होंने सात बार जीत हासिल की है। 1996 से समाजवादी पार्टी का यहां कब्जा है।
संभल पुलिस ने सात एफआईआर में से एक में जिया-उर-रहमान और महमूद के बेटे सुहैल इकबाल को नामजद किया है। उन पर भीड़ को मस्जिद के पास इकट्ठा होने के लिए उकसाने का आरोप लगाया है। दोनों ने पुलिस के आरोपों से इनकार किया है। घटना वाले दिन जिया-उर-रहमान बेंगलुरु में एक आधिकारिक बैठक में भाग लेने गए थे।
हालाँकि, जबकि पुलिस आरोपों का सामना कर रही है कि उसके जवानों ने भीड़ पर गोलीबारी की, जिससे पांच मुस्लिम लोगों की मौत हो गई, स्थानीय हिन्दी मीडिया में अनाम पुलिस स्रोतों का हवाला देते हुए भीड़ की हिंसा के लिए इन दो परिवारों की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को जिम्मेदार ठहराते हुए एक नया नैरेटिव पेश किया गया है।
'तुर्क बनाम पठान' नैरेटिव सबसे पहले योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री नितिन अग्रवाल ने रखा। 25 नवंबर को अग्रवाल ने एक्स पर लिखा था, ''संभल में आगजनी और हिंसा वर्चस्व की राजनीति का नतीजा है। तुर्क-पठान विवाद से न सिर्फ शांति भंग हुई बल्कि आम लोगों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो गए। यूपी पुलिस की तत्परता सराहनीय है।” यानी तुर्क पठान का नैरेटिव पेश किया और पुलिस को क्लीन चिट भी दे दी।
संभल की आगजनी और हिंसा वर्चस्व की राजनीति का नतीजा है। तुर्क-पठान विवाद ने न केवल शांति भंग की, बल्कि आम लोगों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े कर दिए। यूपी पुलिस की तत्परता सराहनीय है। #सपा_प्रायोजित_हिंसा
— Nitin Agarwal (मोदी का परिवार) (@nitinagarwal_n) November 25, 2024
एक रणनीति के तहत अग्रवाल ने पोस्ट के साथ हैशटैग 'एसपी_प्रायोजित_हिंसा' का इस्तेमाल किया। भाजपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष, भूपेन्द्र सिंह चौधरी भी अग्रवाल के रास्ते पर चले। उन्होंने भी हिंसा को संभल के दो प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों के बीच "आंतरिक कलह का नतीजा" करार दिया। उन्होंने एक्स पर लिखा- ''समाजवादी पार्टी की अंदरूनी कलह के कारण संभल में हिंसा हुई है। इस घटना में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सरकार निश्चित रूप से कानूनी कार्रवाई करेगी।” भूपेंद्र चौधरी भाजपा के एमएलसी हैं। उन्होंने संकेत दिया कि घटना की जांच में 'तुर्क-पठान' एंगल भी शामिल किया जाएगा।
समाजवादी पार्टी की अंदरूनी कलह ने संभल में हिंसा कराने का काम किया है। इस घटना में जो भी दोषी पाए जाएंगे सरकार उसके खिलाफ विधि सम्मत कार्यवाई अवश्य करेगी।
— Bhupendra Singh Chaudhary (@Bhupendraupbjp) November 26, 2024
भाजपा सरकार प्रदेश में शांति व्यवस्था बनाएं रखने के लिए दृढ़ संकल्पित है। pic.twitter.com/lPcBM5jF4h
अग्रवाल की विवादास्पद पोस्ट के तुरंत बाद, टीवी चैनलों और समाचार वेबसाइटों ने, पुलिस स्रोतों का हवाला देते हुए, या कुछ मामलों में कोई स्रोत नहीं देते हुए इसी नैरेटिव को लेकर कहानियां प्रकाशित करना शुरू कर दिया। एक दर्जन से अधिक मुख्यधारा के समाचार पोर्टलों और चैनलों ने 'तुर्क-पठान' नैरेटिव को चलाया। इसमें पुलिस के सीधे गोली चलाने और अन्य अत्याचार को गायब कर दिया गया।
इंडिया टीवी वेबसाइट के हेडिंग में कहा गया है, "संभल हिंसा: सूत्रों का दावा है कि इस घटना के पीछे तुर्क बनाम पठान प्रतिद्वंद्विता है, जिसमें चार लोग मारे गए।" जी न्यूज ने बताया- “तुर्क पठान की जंग में जाला संभल। नवभारत टाइम्स ने कहा, “तुर्क बनाम पठान की लड़ाई में चली गोली।” हिंदी अखबार अमर उजाला ने अपने पोर्टल पर कहानी प्रकाशित की: “तुर्की पठानों का विवाद है संभल। क्या तुर्क-पठान विवाद संभल घटना का वास्तविक सच है?” न्यूज़18 इंडिया और न्यूज़18 यूपी ने समान शीर्षक पोस्ट किए- “संभल में खूनी घमासान- तुर्क बनम पठान। रिपब्लिक भारत ने लगभग समान शीर्षक पोस्ट किया। TV9 भारतवर्ष ने पूछा, “तुर्क पठान की लड़ाई या पुलिस मुस्लिम की लड़ाई?”
टेलीविजन चैनल एबीपी की हेडलाइन में कहा गया, "संभल की लड़ाई, तुर्क पठान पर आई।" टाइम्स नाउ नवभारत ने इसे इस तरह बेचा- "संभल में तुर्क बनाम पठान जंग की पूरी कहानी।"
तो सच क्या हैः इस घटना के वास्तविक पक्षकारों या स्टेकहोल्डर्स ने इस नैरेटिव को सिरे से नकार दिया है। शाही जामा मस्जिद समिति के अध्यक्ष जफर अली ने बुधवार को द वायर को बताया- “ऐसी बात का कोई सवाल ही नहीं है। इस इलाके में या यहां तक कि इससे कुछ दूरी पर भी कोई तुर्क नहीं रहता है। उनका ऐसी बातें कहना बेहद अनुचित है।''
पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चलाईं
एक अन्य सूत्र और मस्जिद समिति के एक प्रतिनिधि, ने कहा कि हालांकि दोनों परिवारों के बीच लंबे समय से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है, जो अक्सर राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए तुर्क बनाम पठान लड़ाई के रूप में दिखाई देती है, लेकिन जब मस्जिद की बात आती है तो वे एकजुट होते हैं। सूत्र ने कहा, "पहले सर्वेक्षण के दिन (19 नवंबर) सांसद, विधायक और चेयरमैन सभी मस्जिद में एक साथ खड़े हुए और जल्दबाजी में किए गए सर्वेक्षण के खिलाफ आवाज उठाई थी।"
लखनऊ में वरिष्ठ सपा विधायक और उत्तर प्रदेश में विपक्ष के नेता माता प्रसाद पांडेय ने भी 'तुर्क-पठान' नैरेटिव को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस खुद को बचाने के लिए ऐसी कहानियां गढ़ रही है। पांडेय ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा- “पुलिस खुद को बचाने के लिए ये बातें कह रही है क्योंकि वे बुरी तरह फंस गए हैं। 5 लोगों की मौत पुलिस की गोली से हुई। यह निष्पक्ष जांच के बाद सामने आएगा।”
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