सुप्रीम कोर्ट ने स्याना (बुलंदशहर) में 2018 हिंसा के चर्चित आरोपी योगेश राज को 7 दिनों में सरेंडर करने का निर्देश दिया है, ताकि उसे जेल भेजा जा सके। इस हिंसा में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कथित गोहत्या के अंदेशे में हम लिचिंग की अनुमति नहीं दे सकते। योगेश राज और अन्य आरोपी दक्षिणपंथी संगठन बजरंग दल से जुड़े हुए हैं।
आरोपी योगेश राज को इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिल गई थी। हाई कोर्ट के उस आदेश को इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की पत्नी रजनी सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश ने कहा कि पहली ही नजर में यह मामला ऐसा है कि लो अपने हाथ में कानून को ले रहे हैं। गोहत्या के बहाने एक इंस्पेक्टर की हत्या गंभीर मामला है। आरोपियों पर 124 ए राजद्रोह के तहत केस दर्ज किया गया था।
आरोपी योगेश राज को सितंबर 2019 में जमानत मिली थी। उसके बाद उसका तमाम हिन्दू संगठन जगह-जगह सम्मान करने लगे। उसे हीरो के तौर पर पेश किया जाने लगा। उसने मई 2021 में जिला पंचायत सदस्य पद के लिए बुलंदशहर के वार्ड नंबर 5 से पंचायत चुनाव भी जीत लिया।योगेश राज के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, चार्जशीट में उसका नाम आरोपी के रूप में नहीं था, जिन्होंने सिंह को गोली मारी थी।इस पर अदालत ने कहा, “आपको वापस जेल जाना होगा। हम इन चीजों को आगे नहीं बढ़ने दे सकते। सुनवाई के दौरान, बेंच ने योगेश राज को दी गई जमानत को चुनौती नहीं देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई भी की। इसी वजह से इंस्पेक्टर की पत्नी रजनी सिंह को सुप्रीम कोर्ट में आना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील से कहा, “यदि आप कहते हैं कि उसकी जमानत रद्द करनी है, तो आपने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील क्यों नहीं की? आप खुद कोई कदम नहीं उठाते, लेकिन अब आप आगे आकर कहते हैं कि आप याचिका का समर्थन कर रहे हैं।' अदालत ने राज्य सरकार के वकील के तर्क पर निराशा जताई, जब उसने कहा कि पुलिसकर्मी की विधवा को हाई कोर्ट के जमानत आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की जल्दी थी।सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने टिप्पणी की, "यह आश्चर्यजनक है कि एक शिकायतकर्ता इस मामले को ट्रैक कर रहा है, लेकिन एक राज्य ऐसा नहीं कर रहा है, और वह सिर्फ इंतजार करता रहता है।" घटना की एफआईआर में योगेश राज और स्थानीय बीजेपी नेता शिखर अग्रवाल सहित 53 अज्ञात लोगों के अलावा 27 लोगों के नाम हैं। इन पर हत्या, देशद्रोह, हत्या के प्रयास, दंगा और डकैती का आरोप लगाया गया है। योगेश राज 2 जनवरी, 2019 को गिरफ्तार होने से पहले लगभग एक महीने तक फरार रहा।
सितंबर 2019 में, उसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया, जिससे सिंह की पत्नी रजनी को आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करने पर मजबूर होना पड़ा। रजनी सिंह की ओर से बहस करते हुए, जाने-माने सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने जमानत देने पर आपत्ति जताई। उन्होंने दलील दी कि इस तरह के आदेश का परिणाम केवल मॉब लिंचिंग और हिंसा का सहारा लेने वाले लोगों को प्रोत्साहित करना होगा।हेगड़े ने उसका आपराधिक इतिहास बताते हुए कहा कि योगेश राज, जो 2018 में बजरंग दल के बुलंदशहर इकाई का संयोजक था, एक प्रमुख आरोपी है जिसने भीड़ का नेतृत्व किया और उसे सिंह पर हमला करने के लिए उकसाया। राज्य से जवाब मांगे जाने पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने रजनी की याचिका का समर्थन किया और कहा कि योगेश राज की जमानत रद्द की जानी चाहिए। लेकिन कोर्ट ने मुख्य आरोपी की जमानत रद्द कराने के लिए अपनी तरफ से कार्रवाई नहीं करने पर राज्य सरकार पर नाराजगी जताई। सोमवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने राज्य के वकील से कहा कि राज्य को रजनी की याचिका का समर्थन करने के बजाय अलग से विशेष अनुमति याचिका के जरिए अपील करनी चाहिए थी।
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