गैंगरेप हुआ था
कुछ दिनों पहले ही सीबीआई ने हाथरस गैंगरेप मामले में हाथरस की अदालत में चार्जशीट पेश की है। उसमें सीबीआई ने भी माना है कि हाथरस में पीड़िता के साथ गैंगरेप हुआ था और उसकी हत्या की गई थी। इस मामले में चारों आरोपियों संदीप, उसके चाचा रवि, और उनके दोस्त रामू और लवकुश को सीबीआई ने भी आरोपी बनाया है। पीड़िता पर 14 सितंबर को हमला किया गया था और क़रीब एक पखवाड़े बाद उसकी मौत हो गई थी।
चार्जशीट के अनुसार, पीड़िता और संदीप आसपास ही रहते थे। दोनों के बीच 2-3 साल से नज़दीकी बढ़ने लगी थी। धीरे-धीरे उनके बीच 'संबंध गहरे' हो गए। चार्जशीट में कहा गया है कि यह रिकॉर्ड में है कि 'दोनों एकांत में मिलते थे'। संदीप के पास तीन फ़ोन नंबर थे और उनसे कई कॉल पीड़िता के परिवार के फ़ोन पर किए गए थे। चार्जशीट में कहा गया है कि पूछताछ में पीड़िता के परिवार के किसी भी सदस्य ने फ़ोन पर संदीप से बात करना स्वीकार नहीं किया है।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, चार्जशीट में कहा गया है, 'जाँच में पता चला है कि जब पीड़ित के परिवार के सदस्य को लड़की और संदीप के बीच फ़ोन नंबर की अदला-बदली के बारे में पता चला तो उनके घर के सामने संदीप के परिवार के साथ झगड़ा हुआ था। इस घटना को कई ग्रामीणों द्वारा देखा गया...। इसके बाद पीड़िता के पिता ने अभियुक्तों द्वारा पीड़िता को किए गए फ़ोन कॉल के बारे में (प्रधान के बेटे) को मौखिक शिकायत की, जैसा कि गवाहों ने पुष्टि की है...।'
चार्जशीट से अलग जब पीड़िता की मौत को लेकर विवाद चल रहा था तब इन्हीं सब बातों को लेकर तरह-तरह की कहानियाँ बनाई गईं।
जैसा तर्क आरोपी दे रहे थे उसके अनुसार यह कहानी बताई गई कि लड़की का एक आरोपी से संबंध था और यह लड़की के घरवालों को पसंद नहीं था। पीड़िता की मौत को ऑनर किलिंग बता दिया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, आरोप लगाया गया था कि लड़की की हत्या उसके भाई व माँ ने मिलकर की है। इस कहानी में यह भी कहा गया कि चारों युवक निर्दोष हैं और यह पूरा मुक़दमा झूठा है।
यही कहानी दबंग ग्रामीणों ने बनाई और इसे ख़ूब प्रचारित किया। आसपास के गाँवों के दबंग लोग भी इसी बात को फैलाते रहे और पीड़ित परिवार को आरोपी साबित करने की कोशिश करते रहे। सवर्णों की पंचायत भी हुई।
लेकिन सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार यह कहानी मनगढ़ंत ही है। सीबीआई ने इसको कॉल रिकॉर्ड से भी पुष्ट करने की कोशिश की है। इसमें कहा है कि संदीप के फ़ोन से पीड़िता के परिवार के फ़ोन पर अक्टूबर 2019 से मार्च 2020 के बीच फ़ोन कॉल होते रहे। पीड़िता की ओर से थोड़ी देर का फ़ोन होता था जबकि संदीप की ओर से लंबे समय तक के लिए। इससे पता चलता है कि दोनों के बीच संबंध मार्च तक ठीक थे। लेकिन मार्च के बाद पीड़िता की तरफ़ से फ़ोन कॉल नहीं किया गया जबकि संदीप की तरफ़ से बार-बार फ़ोन करने का प्रयास किया गया। संदीप ने अलग-अलग नंबरों से भी संपर्क करने की कोशिश की।
आरोप पत्र के अनुसार पड़ताल के दौरान एक व्यक्ति ने कहा कि संदीप ने उससे कहा था कि वह उस पीड़िता को फ़ोन करे। आरोप पत्र में कहा गया है, 'पड़ताल के दौरान (व्यक्ति) ने यह भी कहा कि पीड़िता आरोपी संदीप और उसके मोबाइल कॉल को काफ़ी समय से टाल रहा था। उसके बदले हुए व्यवहार के कारण, संदीप हताशा में था।'
चार्जशीट में कहा गया है कि उस व्यक्ति के अनुसार संदीप को संदेह था कि 'उसका (पीड़िता) किसी दूसरे से संबंध हो गया होगा और इससे संदीप की हताशा और बढ़ गई थी'।
चार्जशीट में कहा गया है कि 'पड़ताल के दौरान 22 सितंबर को पीड़िता ने साफ़-साफ़ कहा था कि चारों आरोपियों ने उसका गैंगरेप किया है, उसने मरने से पहले दिए गए अपने बयान यानी डाइंस स्टेटमेंट में भी यही आरोप लगाया है....। इससे पता चलता है कि 14 सितंबर को पीड़िता का तब गैंगरेप हुआ था जब वह बाजरे के खेत में अकेली थी। जाँच में यह भी पता चला है कि चारों आरोपी गाँव में या आसपास मौजूद थे और इससे पीड़िता के आरोप पुष्ट होते हैं।'
चार्जशीट में उत्तर प्रदेश पुलिस की भी खिंचाई की गई है। इसमें कहा गया है कि पीड़िता द्वारा रिकॉर्डेड बयान में तीन लोगों के नाम लिए जाने के बावजूद स्टेटमेंट में सिर्फ़ एक व्यक्ति का नाम दिया गया था। उसमें यह भी कहा गया है कि 'पीड़िता द्वारा छेड़छाड़ का आरोप लगाए जाने के बावजूद रेप से जुड़ी उसकी मेडिकल जाँच नहीं की गई।'
बता दें कि यही वजह है कि उत्तर प्रदेश पुलिस बाद में लिए गए विसरा रिपोर्ट के आधार पर दावा करती रही थी कि उसका गैंगरेप नहीं हुआ था।
एक अक्टूबर को यूपी पुलिस के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने कहा था, ‘रेप के बारे में एफ़एसएल की रिपोर्ट आ गई है और इससे पता चलता है कि बलात्कार के कोई सबूत नहीं हैं। पुलिस ने घटना के बाद उचित धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया और पीड़िता को चिकित्सा सुविधा दी गई। 25 तारीख़ को सारे सैंपल एफ़एसएल को भेजे गये। जो सैंपल इकट्ठे गए थे, उसमें किसी तरह का स्पर्म और शुक्राणु नहीं पाया गया है।’ हालाँकि तब उस रिपोर्ट के आधार पर यह कहा गया था कि शारीरिक हमले के सबूत थे।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, जबकि, सीबीआई द्वारा जाँच अपने हाथ में लेने के बाद एम्स में मल्टी इंस्टिट्यूशनल मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था। उसकी रिपोर्ट में कहा गया, 'यौन उत्पीड़न की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि मामले में कथित तौर पर हमले के एक सप्ताह बाद न्यूनतम रक्तस्राव का पता लगा था। हालाँकि, यौन हिंसा की वारदात के दौरान लगी चोटों के पैटर्न में काफ़ी भिन्नता दिखती है। किसी में चोटों के निशान बिल्कुल गायब (अधिक बार) हो सकते हैं तो किसी में गंभीर चोटों (बहुत दुर्लभ) तक हो सकती है। इस मामले में, चूँकि यौन उत्पीड़न के लिए रिपोर्टिंग/ डॉक्यूमेंटेशन/फोरेंसिक जाँच में देरी हुई थी, इसलिए ये कारक जननांग की चोट के महत्वपूर्ण लक्षण दिखाई नहीं देने के लिए ज़िम्मेदार हो सकते हैं।'
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