उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों को लेकर मचे घमासान के बीच सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय का नारा देने वाली बीएसपी की प्रमुख मायावती फिर से सोशल इंजीनियरिंग की राजनीति पर वापस लौट रही हैं। समाजवादी पार्टी (एसपी) की ओर से यह एलान किए जाने के बाद कि वह लखनऊ में 108 फुट की और हर जिले में भगवान परशुराम की प्रतिमा लगवाएगी, मायावती ने इससे बड़ा एलान किया है।
कई बार उत्तर प्रदेश की हुकूमत संभाल चुकीं मायावती ने कहा है कि एसपी द्वारा भगवान परशुराम की ऊंची मूर्ति लगवाने की बात कहना चुनावी स्वार्थ है और बीएसपी की सरकार बनने पर हर मामले में एसपी से ज़्यादा भव्य परशुराम की प्रतिमा लगाई जाएगी।
मायावती ही वह नेता हैं, जिन्होंने 2007 से 2012 के अपने कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में मूर्तियों की राजनीति की शुरुआत की थी। मायावती ने लखनऊ के साथ ही नोएडा में भी बाबा साहेब आंबेडकर, कांशीराम और ख़ुद की मूर्तियां लगवाई थीं।
यूपी में ब्राह्मण वोटों पर रार
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों को लेकर ये सियासी रार कानपुर के कुख्यात बदमाश विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद से शुरू हुई थी। दुबे के एनकाउंटर के बाद सोशल मीडिया पर ब्राह्मण समाज के एक वर्ग ने इस तरह की पोस्ट शेयर करनी शुरू की कि योगी सरकार में उनके समाज के लोगों की हत्याएं हो रही हैं। इसके बाद कांग्रेस, बीएसपी व एसपी ने बीजेपी पर ब्राह्मणों को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था।
बीजेपी ने विधानसभा से लेकर राज्यसभा में मुख्य सचेतकों की नियुक्ति के मामले में ब्राह्मण कार्ड खेला है और कांग्रेस "ब्राह्मण चेतना संवाद" के माध्यम से ब्राह्मण मतदाताओं को पुनः साधने में जुटी है।
कांग्रेस पहले से ही सक्रिय
उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन वापस पाने को बेकरार कांग्रेस की निगाहें काफी पहले से ब्राह्मणों पर है। पार्टी ने अलग-अलग क्षेत्रों में अपने ब्राह्मण नेताओं को सक्रिय किया है। पिछड़ी जाति से आने वाले प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के साथ बराबर की तरजीह के साथ विधानमंडल दल की नेता आराधना शुक्ला मोना को खड़ा किया है।फिलहाल ब्राह्मण ही सूबे की सियासत का केंद्र बने हुए हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सूबे के चारों प्रमुख सियासी दल अपने-अपने तरीके से ब्राह्मण समुदाय को पाले में लाने की कवायद में जुटे हैं।
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