यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने बुधवार शाम को अप्रत्याशित ढंग से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी कैबिनेट के सभी मंत्रियों को राजभवन में बुलाकर अलग-अलग बात की। राज्यपाल आमतौर पर इस तरह कैबिनेट के सारे मंत्रियों से अकेले में अलग-अलग बात नहीं करते। यूपी में यह घटनाक्रम ऐसे समय हुआ है जब राज्य में तीन मंत्रियों की नाराजगी योगी के खिलाफ खुलकर सामने आ चुकी है। इससे संकेत यह मिल रहा है कि बीजेपी के अंदर यूपी को लेकर कुछ न कुछ चल रहा है।
राज्यपाल पटेल की मंत्रियों से अलग-अलग मुलाकात के बाद स्वतंत्र देव सिंह ने पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ दिया और अब वो सिर्फ अपने मंत्रालय पर फोकस करेंगे। हालांकि यह सामान्य घटनाक्रम है। स्वतंत्र देव सिंह को पद छोड़ना ही था लेकिन उन्होंने राज्यपाल से अलग बात करने के बाद पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ा है। स्वतंत्र देव सिंह को जब प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया था तो वो बीजेपी आलाकमान की पसंद थे।
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योगी कैबिनेट के सभी मंत्रियों को पद गोपनीयता की शपथ मौजूदा राज्यपाल ने ही दिलाई थी। लेकिन बुधवार को हुए घटनाक्रम के बारे में कहा गया है कि चूंकि उनमें से अधिकांश 25 मार्च, 2022 को मंत्रियों के रूप में शपथ लेने के बाद राज्यपाल से नहीं मिले थे, इसलिए राज्य मंत्री, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और कैबिनेट में शामिल लोगों ने एक-एक करके अपना परिचय दिया। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक फिर गवर्नर ने इनसे अकेले में पांच-पांच मिनट बात की।
वो बातचीत क्या थी, उसकी जानकारी मीडिया को दोनों पक्षों में किसी ने नहीं दी। लेकिन समझा जाता है कि हाल ही में योगी के सहयोगी मंत्री ब्रजेश पाठक, जितिन प्रसाद और दिनेश खटीक की नाराजगी जिस तरह सार्वजनिक हुई थी, इस मुलाकात का संबंध उसी से है। आनंदी बेन पटेल गवर्नर बनने से पहले गुजरात की सीएम रह चुकी हैं और पीएम मोदी के करीबी लोगों में रही हैं। वो बीजेपी में लंबे समय से थीं। यानी आनंदी बेन पटेल राजनीतिक रूप से बहुत परिपक्व हैं। मंत्रियों से उनकी मुलाकात का अर्थ राजनीतिक होने के अलावा और क्या हो सकता है।
तीन मंत्रियों का मुद्दा हालांकि फिलहाल शांत हो गया है। लेकिन छोटे-छोटे घटनाक्रमों के जरिए जो बातें सामने आ रही हैं, उससे मामला उतना शांत भी नहीं लग रहा है। योगी कैबिनेट के मंत्री जितिन प्रसाद अपने एक विश्वस्त आईएएस अनिल पांडे को दिल्ली से लेकर लखनऊ आए लेकिन योगी आदित्यनाथ ने उस आईएएस को फिर से दिल्ली रवाना कर दिया। उस आईएएस के खिलाफ यूपी विजिलेंस जांच कर रही है।
जितिन प्रसाद के ओएसडी को मुख्यमंत्री ने हाल ही में निलंबित करने का आदेश दिया था। पीडब्ल्यूडी में फैले करप्शन के आरोप में मुख्यमंत्री ने हाल ही में तीन अफसरों को निलंबित किया था। जिसमें यह ओएसडी भी शामिल था। जितिन प्रसाद के पास ही पीडब्ल्यूडी मंत्रालय है। वो तिलमिला कर रह गए।
जितिन प्रसाद ने अब राज्य के विधायकों को बुला-बुलाकर मिलना शुरू कर दिया है। हालांकि इसे शिष्टाचार मुलाकात कहा जा रहा है। 26 जुलाई को जितिन प्रसाद के घर अचानक ही कई ब्राह्मण मंत्री और विधायक जमा हो गए थे। हालांकि इसे भी शिष्टाचार बैठक कहा गया। लेकिन जिस तरह से बैठकों का सिलसिला बढ़ रहा है, वो अब महज शिष्टाचार नहीं है। बता दें कि जितिन प्रसाद कांग्रेस में थे, वो बीजेपी में दिल्ली आलाकमान के जरिए पहुंचे हैं।
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की नाराजगी का मामला तो और भी दिलचस्प है। ब्रजेश पाठक को बिना विश्वास में लिए स्वास्थ्य विभाग में बड़े पैमाने पर तबादले हो गए। नाराज पाठक ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद को पत्र लिखकर इस संबंध में जानकारी मांगी। अमित मोहन के पास इसका कोई जवाब नहीं था। मुख्यमंत्री ने इस मामले में फौरन पैबंद लगाते हुए तीन सदस्यीय कमेटी बना दी और उससे इस विवाद को निपटाने को कहा। यहां यह तथ्य गौरतलब है कि ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम दिल्ली आलाकमान ने बनवाया है। पाठक पहले बीएसपी में थे और उसके बाद बीजेपी में आए।
एक और मंत्री दिनेश खटीक ने तो अपना इस्तीफा सीधे अमित शाह को भेज दिया। दिनेश खटीक ने मुख्यमंत्री से सीधे असहमति जताई और आरोप लगाया कि चूंकि वो दलित हैं, इसलिए अधिकारी उनकी बात ही नहीं सुनते। अमित शाह को भेजा गया उनका इस्तीफा पत्र वायरल हो गया। इसके बाद उन्हें फौरन दिल्ली बुलाया गया। दिल्ली से लौटकर दिनेश खटीक मुख्यमंत्री योगी से मिले और फिर सब कुछ शांत हो गया।
दिनेश खटीक ने अमित शाह को इस्तीफा यूं ही नहीं भेजा था। दिनेश खटीक भी दिल्ली आलाकमान के निर्देश पर ही योगी कैबिनेट में मंत्री बने थे। खटीक को मंत्री बनाने का फैसला योगी का नहीं था। इसलिए जब इस्तीफे की बात आई तो उन्होंने इस्तीफा वहीं भेजा, जहां की कृपा से वो मंत्री बने थे।
इन सारे हालात को अगर एक कड़ी में जोड़ा जाए तो संकेत साफ है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए परेशानी पैदा की जा रही है। अगर बड़े पैमाने पर मंत्री योगी के कामकाज के तरीके पर ऐतराज करते हैं तो जाहिर है आलाकमान को विचार करना पड़ेगा। इस बात के मद्देनजर गवर्नर की बुधवार की अलग-अलग मुलाकात छोटा घटनाक्रम नहीं है।
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इस संबंध में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि राज्यपाल की जिम्मेदारी है कि वह यह तय करे कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार काम करे। तो, राज्यपाल ने सभी मंत्रियों को इस तरह के निर्देश जारी किए होंगे। हालांकि एक जिम्मेदार पार्टी के प्रवक्ता की यह सतर्क टिप्पणी है, उन्होंने इसमें राजनीति तलाशने की कोशिश नहीं की।
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