क्या महात्मा गांधी की हत्या की योजना को अंतिम रूप देने के लिए ही अगस्त 1947 में हिन्दू महासभा की बैठक का स्वांग रचा गया था? क्या विनायक दामोदर सावरकर अस्वस्थता के बावजूद मुंबई से दिल्ली इसलिए आए थे कि उनकी निगरानी में हत्या की योजना को अंतिम रूप दिया जा सके ?
'द मर्डरर, द मोनार्क एंड द फ़कीर : अ न्यू इनवेस्टीगेशन ऑफ़ महात्मा गांधी असेशिनेशन' नामक नई किताब से ये सवाल उठते हैं।
सावरकर, नाथूराम गोडसे और गांधी की हत्या के एक और अभियुक्त नारायण आप्टे 8 अगस्त, 1947 को मुंबई से दिल्ली हवाई जहाज़ से आए ताकि हिन्दू महासभा की बैठक में भाग ले सकें।
उन दिनों सावरकर बीमार थे और मुंबई से बाहर कहीं नहीं जाते थे, लेकिन इस बैठक में भाग लेने के लिए वह विशेष रूप से दिल्ली आए।
हथियार का इंतजाम
इन तीनों ने दिल्ली में हिन्दू राष्ट्र सेना के संस्थापक दत्तात्रेय परचुरे से मुलाक़ात की।
इसके पहले जुलाई, 1947 में ही विष्णु करकरे और आप्टे ने दिगंबर बगडे से कहा था कि 'एक प्रभावशाली व्यक्ति' के लिए हथियार का इंतजाम करना है।
पाकिस्तान को पैसे देने पर विवाद
बता दें कि भारत-पाकिस्तान बँटवारे के समय भारत को 55 करोड़ रुपए पाकिस्तान को देने थे। कई लोग चाहते थे कि पाकिस्तान को यह रकम नहीं दी जाए, लेकिन गांधी जी का कहना था कि पाकिस्तान को उसके हिस्से के पैसे दे देने चाहिए।
गांधी की हत्या क्यों?
ऐसा कहा जाता है कि गोडसे ने यह रकम देने के लिए गांधी जी के दवाब के कारण उनकी हत्या का फ़ैसला किया था।
लेकिन नई किताब यह दावा करती है कि ऐसा नहीं था और पाकिस्तान को पैसे देने के निर्णय की वजह से गांधी की हत्या नहीं की गई।
गांधी की हत्या की योजना उसके पहले ही बन चुकी थी।
अक्टूबर 1947 में कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठ होने के बाद उसे पैसे देने का विवाद उठा था। लेकिन गांधी जी की हत्या की योजना जुलाई 1947 में ही बन चुकी थी।
दिल्ली में अगस्त 1947 में हिन्दू महासभा की बैठक और बीमारी के बावजूद उसमें सावरकर की मौजूदगी को गांधी जी की हत्या में सावरकर की भूमिका के सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह तो साफ है कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने का मुद्दा उठने के पहले ही गांधी की हत्या की योजना बन चुकी थी।
सावरकर से दुखी गोडसे
परचुरे का मुक़दमा लड़ने वाले और उन्हें हाई कोर्ट से रिहा कराने वाले वकील पी. एल. इनामदार ने अपने संस्मरण में लिखा था कि गोडसे इस बात से बेहद दुखी थे कि सावरकर ने अपने को उनसे बिल्कुल अलग कर लिया और मुक़दमे की सुनवाई के दौरान अदालत में एक बार उनकी ओर देखा तक नहीं था।
किसी को उकसाना और बाद में उससे खुद को बिल्कुल अलग कर लेना सावरकर के लिए नई बात नहीं थी, वे इसके पहले भी ऐसा कर चुके थे। यह उनके लिए बिल्कुल सामान्य बात थी कि वे अपने लोगों को छोड़ देते थे।
धनंजय कीर ने सावरकर पर एक किताब लिखी थी, जिसमें उनकी काफी तारीफ की गई थी। लेकिन कीर ने इसमें लिखा था कि सावरकर ने अंग्रेज अफ़सर सर विलियम कर्ज़न वाइली की हत्या करने के लिए मदन लाल धींगड़ा को रिवॉल्वर दिया था।
इसी तरह अनंत कन्हारे ने अंग्रेज अफ़सर के. एम. टी. जैक्सन की हत्या 1909 में उस रिवॉल्वर से कर दी थी, जिसे सावरकर ने ब्रिटेन से भेजा था। सावरकर को इसी कारण पोर्ट ब्लेअर स्थित सेल्युलर जेल भेज दिया गया था, जिसे उन दिनों काले पानी की सज़ा कहा जाता था।
हिन्दू कमज़ोर होते हैं?
यदि पाकिस्तान को पैसे देने का समर्थन करने के कारण गांधी जी की हत्या नहीं की गई थी तो आखिर यह हत्या क्यों हुई थी?
प्रियंका कोटमराजु और अप्पू एस्थोज़ सुरेश ने अपनी किताब में यह सवाल उठाया है। उनका कहना है कि
सावरकर यह मानते थे कि हिन्दू अहिंसक, कमज़ोर और स्त्रैण स्वभाव के होते हैं, उनमें पुरुषोचित गुणों की कमी होती है, वे इतने मजबूत नहीं होते हैं कि मुसलमानों को रोक सकें और उनका सामना कर सकें।
'पौरुषपूर्ण राष्ट्रवाद'
सावरकर मन ही मन मुसलमानों की तारीफ इसलिए करते थे कि उनके मुताबिक, उनमें पुरुषोचित गुण होते हैं जो हिन्दुओं में नहीं होते।
सावरकर चाहते थे कि हिन्दू ये पुरुषोचित गुण हासिल करें। उन्होंने अपनी पहली किताब 'सिक्स ग्लोरियस एपक्स ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री' में इसकी चर्चा की है और बौद्ध धर्म का यह कर मजाक उड़ाया है कि इसने हिन्दुओं को कमज़ोर बनाया और वे विदेश आक्रमण का सामना नहीं कर सके।
इतना ही नहीं, इस किताब के अनुसार, सावरकर का मानना था कि जब मुसलमानों ने हमला किया तो बौद्धों के पास अपना धर्म बचाने का कोई उपाय नहीं था और उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों का साथ दिया। सावरकर इस मामले में मुसलमानों को 'विश्वासघाती' मानते हैं।
इस किताब के अनुसार,
गांधी की हत्या इसलिए की गई कि वह इस 'पौरुषपूर्ण राष्ट्रवाद' को हासिल करने की हिन्दुओं की कोशिश के रास्ते में बहुत बड़ी बाधा थे।
बता दें कि महात्मा गांधी की हत्या में भूमिका होने के आरोप में सावरकर गिरफ़्तार किए गए थे, लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया था।
बाद में मार्च 1965 में जस्टिस जे. एल. कपूर की अगुआई में बने आयोग ने कहा था कि गांधी जी की हत्या में शक की सुई सावरकर पर आ कर टिक जाती है । इसके पहले अदालत ने सावरकर को तकनीकी आधार पर ही रिहा किया था।
जिस दिगंबर बडगे ने यह कहा था कि सावरकर ने गोडसे को गांधी की हत्या के लिए 'यशस्वी भव' का आर्शीवाद दिया था, वह बाद में सरकारी गवाह बन गया। इस सरकारी गवाह के बयान की पुष्टि किसी निष्पक्ष व्यक्ति से की जानी चाहिए थी, जो नहीं हो सकी थी। इस आधार पर ही सावरकर को रिहा किया गया था।
लेकिन कपूर आयोग की रिपोर्ट आने के पहले ही सावरकर ने अन्न- जल त्याग दिया था, जिस वजह से उनकी मृत्यु हो गई।
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