विरोधाभासों के कारण सैकड़ों वर्षों से भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखा जाता रहा जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता है। यहाँ तवज्जो पाने के लिए बीता हुआ कल और वर्तमान आपस में संघर्षरत रहे हैं। 2020 तक भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा युवाओं वाला देश हो जाएगा, लेकिन इसके साथ ही 60 से ज़्यादा उम्र की जनसंख्या के मामले में भी भारत दूसरे नंबर पर होगा। आज़ादी के बाद देश को सत्तर साल हो गये हैं, लेकिन इसके नेता एक किशोर की भाषा की तरह बोलते हैं। राष्ट्र व्यस्क हो गया है, लेकिन इसके नेता एक बुरे नौसिखिये की तरह आपस में लड़ते हैं। वे सर्वसम्मति से नहीं, आक्रामकता से जीतना चाहते हैं। इस दौर का कोई भी नेता न तो सौहार्द्रपूर्ण भारत की बात करता है और न ही सकारात्मक एजेंडे की। उनके विचार शासन-प्रणाली के सिद्धांतों पर नहीं, बल्कि जाति, समुदाय, आरक्षण, मंदिर और चुनाव से पहले मुफ़्त में बाँटी जानी वाली चीजों की घोषणाओं पर टिकी है। 90 करोड़ मतदाताओं के साथ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत अब परस्पर विरोधी विचारों के बीच प्रतिस्पर्धा का मंच नहीं रहा।
संवाद से ही बचा रह सकता है लोकतंत्र, दोषारोपण से नहीं
- सच्ची बात
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- 1 Apr, 2019

जब से 17वें लोकसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू हुई है तब से ही सभी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और छोटे दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रतिस्पर्धा में जुट गये हैं। न तो ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ता और न ही राष्ट्रीय स्तर के नेता मुद्दों और विचारधारा की चर्चा करते हैं। बमुश्किल ही कोई पार्टी या नेता होगा जिसने ऐसे ओछे नये नैरेटिव को नहीं अपनाया होगा।