तमिलनाडु के जिस गिरफ़्तार मंत्री सेंथिल बालाजी को राज्यपाल ने बर्खास्त करने का आदेश निकाल दिया था, उस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मंत्री को सिर्फ़ मुख्यमंत्री ही हटा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी को राज्य मंत्रिमंडल से हटाने की याचिका शुक्रवार को यह कहते हुए खारिज कर दी कि इस पर निर्णय लेना मुख्यमंत्री का काम है।
जेल में बंद सेंथिल बालाजी को मंत्रिमंडल से हटाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्यपाल को किसी मंत्री को बर्खास्त करने के लिए मुख्यमंत्री की सिफारिश की आवश्यकता होती है और वह इस मुद्दे पर स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकते हैं।
इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट ने भी मंत्री को हटाने की याचिका खारिज कर दी थी और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को इस मामले पर फैसला लेने की सलाह दी थी।
इससे पहले सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी के बाद राज्यपाल के एक आदेश से बखेड़ा खड़ा हो गया था। जून महीने में पहले तो तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने अप्रत्याशित तौर पर बिना एमके स्टालिन कैबिनेट से सलाह लिए ही जेल में बंद मंत्री वी सेंथिल बालाजी को बर्खास्त कर दिया था, लेकिन बाद में जब डीएमके की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई तो राजभवन ने कदम 'पीछे' खींच लिए थे। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार तब देर रात मुख्यमंत्री कार्यालय के एक सूत्र ने कहा था कि राज्य सरकार को राजभवन से सूचना मिली कि राज्यपाल का बर्खास्तगी आदेश कानूनी सलाह के लिए लंबित है। हालाँकि, राजभवन से इसकी पुष्टि नहीं हुई थी।
मंत्री वी सेंथिल बालाजी को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत 14 जून को गिरफ्तार किया था।
राज्यपाल ने 31 मई को स्टालिन को पत्र लिखकर सुझाव दिया था कि वह मंत्री को हटा दें। इस पर स्टालिन ने विस्तार से जवाब दिया और कहा था कि राज्यपाल के पास ऐसे मामलों में कोई अधिकार नहीं है।
पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने चिकित्सा आधार पर जमानत की मांग करने वाली बालाजी की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। इससे मद्रास उच्च न्यायालय के रुख को मजबूती मिली थी कि रिहा होने पर वह गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं।
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