बिना चुनाव लड़े राज ठाकरे की पार्टी को नोटिस भेज कर सभाओं के खर्च़ देने की माँग चुनाव आयोग ने की है। क्या चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के दबाव में ऐसा कुछ कर रहा है?
महाराष्ट्र के चुनावों में इस बार एक मुद्दा जोर-शोर से चर्चा में है और वह है प्रॉक्सी (परोक्ष) प्रचार का। इसको लेकर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी तक को शिकायत कर इसे रुकवाने की माँग की गयी है।
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 23 अप्रैल को महाराष्ट्र में जिन 14 लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होने जा रहे हैं वे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए अग्नि परीक्षा साबित होने वाले हैं।
मोदी बार-बार महाराष्ट्र क्यों आ रहे हैं और शरद पवार को ही निशाना क्यों बना रहे हैं, यह सवाल अब चर्चा का विषय बन गया है। क्या इनके बीच को व्यक्तिगत दुश्मनी है या अन्य कोई कारण?
2014 के चुनाव में मतदाताओं ने एकतरफ़ा वोट डाले थे, लेकिन इस बार चुनाव में वह मोदी लहर दिखाई नहीं दे रही है। हालाँकि सर्वेक्षण बीजेपी-शिवसेना के पक्ष में आते दिख रहे हैं, परिस्थितियाँ बदली हैं। तो किस करवट बैठेगा ऊँट?
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दंभ भरने वाले हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं इस बात का अंदाज़ा चुनाव पूर्व के दो महीनों में लगाया जा सकता है। दलों के बीच लड़ाई जाति-धर्म-कुल-गोत्र और क्षेत्र में उलझकर रह गई है।
क्या बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बाद भी पार्टी के शीर्ष नेताओं में अभी भी कोई कसक या गाँठ रह गयी है? एक दिन पहले ‘सामना’ में छपे संपादकीय को पढ़कर तो ऐसा ही लगता है।
महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी-शिवसेना गठजोड़ को हराने के लिए कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस आघाडी यानी गठबंधन की नज़र प्रकाश आम्बेडकर-असदउद्दीन ओवैसी की वंचित आघाडी पर है।