महाराष्ट्र के चुनावों में इस बार एक मुद्दा जोर-शोर से चर्चा में है और वह है 'प्रॉक्सी' यानी 'परोक्ष' प्रचार का। इसको लेकर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी तक को शिकायत कर इसे रुकवाने की माँग की गयी है। यह ‘प्रॉक्सी’ प्रचार का मामला जुड़ा है महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे की सभाओं से, जो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी प्रमुख अमित शाह के ख़िलाफ़ प्रदेश भर में कर रहे हैं। राज ठाकरे की इन सभाओं में जमकर युवा वर्ग उमड़ रहा है। अपनी इन सभाओं में वह नरेन्द्र मोदी के उन वीडियो को दिखाते हैं जो मोदी आतंकवाद, नोटबंदी, सैनिकों, देश की सुरक्षा, विकास आदि को लेकर पिछले लोकसभा चुनाव से पहले बोलते थे। दरअसल, यह नरेंद्र मोदी के भाषणों का 'फैक्ट चेक' जैसा है।
सोशल मीडिया में नरेन्द्र मोदी के इन भाषणों के क्लिप बहुत दिनों से चल रहे हैं लेकिन राज ठाकरे अपने भाषणों में जिस तरह से उनको प्रस्तुत कर रहे हैं वे काफ़ी दिलचस्प लगते हैं। अपने इन भाषणों में राज ठाकरे किसी को वोट देने की अपील नहीं करते, बस यह गुज़ारिश करते हैं कि वे नरेंद्र मोदी और अमित शाह को भारत की राजनीति के फलक पर देखना नहीं चाहते, इसलिए इन दोनों नेताओं या इनकी पार्टी को मदद पहुँचाने वाले किसी नेता या पार्टी को मतदान नहीं करें। वह अपनी सभा में नरेंद्र मोदी के उस दावे की भी हँसी उड़ाते हैं जिसमें मोदी कहते हैं कि कांग्रेस ने 70 साल में कुछ नहीं किया था।
राज ठाकरे की ये सभाएँ बीजेपी के लिए सिरदर्द बनती जा रही हैं लिहाज़ा उन्होंने राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से अपील की है कि इस प्रकार के प्रॉक्सी प्रचार को रोका जाए।
बीजेपी की तरफ़ से लगायी गयी अर्जी में यह कहा गया है कि यदि इस पर रोक नहीं लगायी गयी तो यह चुनाव के दौरान प्रचार की एक नयी व्यवस्था को जन्म देगा और आचार संहिता के अस्तित्व को चुनौती देगा? लेकिन क्या बीजेपी का यह सवाल आधा सच ही पेश नहीं करता है?
राम मंदिर आंदोलन के समय साधु-संत क्या करते थे?
चुनाव के दौरान हर उस गतिविधि पर अंकुश लगाया ही जाना चाहिए जो आचार संहिता का उल्लंघन करती हो, इस पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। लेकिन क्या प्रॉक्सी प्रचार पहली बार चुनाव के दौरान किया जा रहा है? जिसने 1989 यानी राम मंदिर आन्दोलन के दौर का चुनाव प्रचार देखा है उसे इस तरह के प्रचार की याद दिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। उस समय साधू-संतों के रूप में शहर-शहर और गाँव-गाँव प्रचारक पहुँचे। धर्म सभाओं में पार्टी विशेष या यूँ कह लें कि बीजेपी के पक्ष में लोगों से मतदान की अपील की गयी थी। क्या साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती, आचार्य धमेंद्र, चिन्मयानन्द की सभाएँ या धर्म सभाएँ इसी प्रकार के प्रॉक्सी प्रचार की श्रेणी में नहीं आतीं, जो उस दौर में देश भर में की गयी थीं?
रामदेव की सभाएँ किसको सपोर्ट करती थीं?
बहुत दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। साल 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान रामदेव की सभाएँ भी तो इसी प्रॉक्सी प्रचार का एक रूप रही हैं। क्या वे अपने योग शिविर में राजनीतिक भाषण नहीं करते थे और कालाधन वापस लाने के लिए अपरोक्ष रूप से बीजेपी या नरेंद्र मोदी को मतदान करने की अपील नहीं करते थे? हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार में भी रामदेव ने इसी तरह से सभाएँ और योग शिविर के माध्यम से लोगों के बीच पार्टी विशेष का प्रॉक्सी प्रचार किया था। अब ऐसे में बीजेपी की यह शिकायत कि राज ठाकरे की ये सभाएँ चुनाव के दौरान प्रचार की नयी परंपरा कायम करेगी, कुछ नयी नहीं लगती है।
ख़बर तो यह भी है कि बीजेपी नहीं चाहती है कि मनसे की मुंबई में कोई सभा हो। मनसे की तरफ़ से इस तरह के आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि उन्हें मुंबई में शिवडी क्षेत्र में सभा करने की अनुमति माँगने के लिए परेशान किया गया। बताया जाता है कि राज ठाकरे आने वाले कुछ दिनों में मुंबई में क़रीब 4 सभाएँ करने वाले हैं जो महानगर के मराठी मतदाताओं के ध्रुवीकरण के हिसाब से अहम भूमिका निभा सकती हैं।
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