"अवैध कार्य" की परिभाषा
"अवैध कार्य" से मतलब किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा की गई ऐसी किसी भी कार्रवाई से है जो: सार्वजनिक व्यवस्था, शांति या स्थिरता को खतरे में डालती हो। सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा डालती हो या ऐसा करने की प्रवृत्ति रखती हो।
न्याय प्रशासन, कानूनी रूप से स्थापित संस्थानों, या सरकारी कर्मचारियों में हस्तक्षेप करती हो या ऐसा करने की प्रवृत्ति रखती हो।
किसी सार्वजनिक सेवक, जिसमें राज्य या केंद्र सरकार की सेनाएँ शामिल हैं, के खिलाफ आपराधिक बल या धमकियों का इस्तेमाल करके भय पैदा करने की कोशिश करती हो, जब वे अपनी कानूनी शक्ति का प्रयोग कर रहे हों। हिंसा, विनाशकारी कार्यों में शामिल हो या उन्हें बढ़ावा देती हो, या ऐसी गतिविधियाँ जो जनता में भय और आतंक पैदा करें। इसमें हथियारों, विस्फोटकों, या अन्य खतरनाक साधनों का उपयोग, साथ ही रेलवे, सड़क, वायुमार्ग, या जलमार्ग जैसे परिवहन नेटवर्क को बाधित करना शामिल है। स्थापित कानूनों या कानून के तहत बनाई गई संस्थाओं की अवज्ञा को प्रोत्साहित करती हो। उपरोक्त किसी भी अवैध कार्य को अंजाम देने के लिए धन या सामग्री एकत्र करती हो। यह तब लागू होता है, चाहे वह कार्य शारीरिक कार्रवाइयों, बोले गए या लिखित शब्दों, इशारों, दृश्य प्रस्तुतियों, या किसी अन्य माध्यम से किया जाए।
"अवैध संगठन" की परिभाषा
"अवैध संगठन" से मतलब किसी ऐसे समूह से है जो: अवैध कार्यों में शामिल हो। किसी भी माध्यम या तरीके से अवैध कार्यों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाता, सहायता करता, समर्थन करता, या बढ़ावा देता हो। कोई भी व्यक्ति जो किसी अवैध संगठन का सदस्य हो, उसकी बैठकों में भाग लेता हो, या ऐसे संगठनों को दान देता हो या उनसे दान स्वीकार करता हो, उसे तीन साल की जेल या ₹3 लाख का जुर्माना हो सकता है।
कानून के बारे में प्रमुख चिंताः यह विधेयक प्रशासन को अत्यधिक पावर देता है। यदि किसी व्यक्ति पर अवैध गतिविधियों में शामिल होने का संदेह हो, तो सरकार उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई कर सकती है। इससे राज्य तंत्र को लोगों के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण करने की अनुमति मिल सकती है।
- सरकार की आलोचना करने वाली असहमति की आवाज़ों और संगठनों को आसानी से "अवैध" करार देकर प्रतिबंधित किया जा सकता है। यह विधेयक लोकतंत्र में वैचारिक विविधता के महत्व का सम्मान नहीं करता। कुछ मामलों में, सरकार को न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने की शक्ति भी दी गई है, जो न्यायपालिका की आजादी को कमजोर कर सकती है।
सरकारी नीतियों की आलोचना या शांतिपूर्ण प्रदर्शन को "अवैध कार्य" के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जो खुली चर्चा के लोकतांत्रिक सिद्धांत के विपरीत है। विधेयक के कई प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संगठन का अधिकार, और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों को सीमित कर सकते हैं। संक्षेप में, यह विधेयक लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए खतरा है। यह सत्तारूढ़ प्रशासन को अत्यधिक शक्तियाँ प्रदान करता है, जिससे नागरिकों के अधिकारों और आजादी को जोखिम पैदा होता है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले ने शनिवार को महाराष्ट्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित 'महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 2024' को मौलिक अधिकारों के लिए खतरा करार दिया। इस विधेयक को 'शहरी नक्सल' खतरे को रोकने के लिए लाया गया है, लेकिन सुले का कहना है कि यह आम नागरिकों के सरकार के खिलाफ बोलने के अधिकार को छीन लेगा।
यह बयान तब आया जब महाराष्ट्र विधान सचिवालय ने राष्ट्रीय अखबारों में विज्ञापन के जरिए नागरिकों और गैर-सरकारी संगठनों से इस विधेयक पर सुझाव और आपत्तियां मांगीं। विधानसभा ने पिछले शीतकालीन सत्र में इसे राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले की अध्यक्षता वाली समिति को विचार के लिए भेजा था। जनता से 1 अप्रैल तक सुझाव देने को कहा गया है।
उन्होंने चेतावनी दी कि यह विधेयक "पुलिस राज" को बढ़ावा दे सकता है, जिसका इस्तेमाल व्यक्तियों, संस्थानों या संगठनों के खिलाफ दमन के लिए हो सकता है, जो लोकतांत्रिक तरीके से रचनात्मक विरोध जताते हैं। सुले ने कहा, "यह विधेयक 'हम भारत के लोग' की अवधारणा को कमजोर करता है। प्रशासन को अनियंत्रित शक्तियां देकर व्यक्तियों को प्रतिशोध के चलते परेशान करने का जोखिम है।"
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