दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दंभ भरने वाले हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं इस बात का अंदाज़ा चुनाव पूर्व के दो महीनों में लगाया जा सकता है। साढ़े चार साल तक जो पार्टियाँ विकास की बातें और बड़ी-बड़ी योजनाएँ व आँकड़े दिखाती रहती हैं चुनाव में जाति-धर्म-कुल-गोत्र और क्षेत्र में उलझकर रह जाती हैं। उम्मीदवारों की योग्यता धनबल और भुजबल की कसौटी पर आँकी जाने लगती है तथा जिताऊ प्रत्याशी के चेहरे तले लोकतंत्र को साम-दाम-दंड-भेद के फ़ॉर्मूले से साधने का खेल खेला जाता है। देश के मीडिया में जाति-धर्म को लेकर सबसे ज़्यादा पंचनामा उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति का किया जाता है, लेकिन तक़रीबन हर प्रदेश में यह खेल उतनी ही बेशर्मी से खेला जाता है जितना कि उत्तर प्रदेश-बिहार में।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दंभ भरने वाले हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं इस बात का अंदाज़ा चुनाव पूर्व के दो महीनों में लगाया जा सकता है। दलों के बीच लड़ाई जाति-धर्म-कुल-गोत्र और क्षेत्र में उलझकर रह गई है।