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थोड़े ही दिन में बेनामी संपत्ति वालों के लिए तूफान आने वाला है। बेनामी संपत्ति का क़ानून लाया गया है और लोगों को इसका असर जल्द देखने को मिलेगा।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत इलेक्टोरल बियरर बॉन्ड लाया गया, उसने यह बहस खडी कर दी है कि इससे पारदर्शिता आई या चुनावी चंदे में बेनामी पैसा या दान बढ़ गया है।
'अज्ञात स्रोतों' से चंदा
इससे राजनीतिक दलों को 'अज्ञात स्रोतों' से मिलने वाले कॉरपोरेट चंदे को बढ़ावा मिला है और विदेशी स्रोत से आने वाला चंदा भी वैध हो गया। दरअसल यह इलेक्टोरल बियरर बॉन्ड को शुरू होते ही विवादों में घिर गया था। इसको शुरू करने के लिए 5 कानूनों में संशोधन किया गया। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया एक्ट, रेप्रजेंटेशन ऑफ़ पीपल एक्ट, कंपनी एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट, और फ़ॉरन कंट्रीब्यूशन एक्ट।
चुनाव आयोग को इन इलेक्टोरल बियरर बॉन्ड पर गहरी आपत्ति थी, क्योंकि जनप्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 29 सी में बदलाव करते हुए कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से हासिल चंदों को चुनाव आयोग की जाँच के दायरे से बाहर रखा जाएगा।
बीजेपी, कांग्रेस ने लिया था विदेशों से चंदा
साल 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट ने बीजेपी और कांग्रेस को विदेशी चंदों के मामले में एफ़सीआरए के मामले के तहत दोषी पाया था और केंद्र सरकार को इन दोनों पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश भी दिए थे। लेकिन संसद में हंगामे के बीच सरकार ने वित्त विधेयक 2018 में 21 संशोधनों को मंज़ूरी दे दी थी। उन्हीं में से एक संशोधन विदेशी चंदा नियमन क़ानून 2010 था। यह कानून अब तक भारत की राजनीतिक पार्टियों को विदेशी कंपनियों से चंदा लेने से रोकता था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि उस संशोधन के कारण अब 1976 से ही राजनीतिक दलों को मिलने वाले हर विदेशी चंदे की जांच की संभावना को ख़त्म कर दिया गया।
सारा माल सत्ताधारी दल को?
लेकिन अब नये इलेक्टोरल बियरर बॉन्ड का सारा हिस्सा सत्ताधारी दल की जेब में ही जाने लगा तो हंगामा तो होना ही था। सरकार ने क़ानून संशोधन अपने हिसाब से किये, जनप्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 29 सी में बदलाव करते हुए कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से हासिल चंदों को चुनाव आयोग की जाँच के दायरे से बाहर रखा जाएगा। इसी प्रकार आरपी एक्ट की धारा 29 सी के तहत अब भी 20,000 रुपये तक का चंदा बिना किसी हिसाब-किताब के लिया जा सकता है। कंपनी एक्ट 2013 में कहा गया था कि कोई कंपनी एक वित्तीय वर्ष में पिछले तीन साल के अपने औसत नेट प्रॉफिट के 7.5 फ़ीसदी से ज्यादा का राजनीतिक चंदा नहीं दे सकती। लेकिन इसमें बदलाव करते हुए अब 'कितनी भी राशि' देने की छूट दे दी गई है।
कंपनियों को इस बात से भी छूट है कि वे अपने बही खाते में यह बात छुपा लें कि उन्होंने किस पार्टी को चंदा दिया है। इससे इस बात का जोखिम बढ़ा है कि सिर्फ़ राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए शेल कंपनियों का गठन किया जाए।
शेल कंपनियों का खेल
पिछले वर्षों में चुनाव आयोग ने कई बार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर और ख़त लिख कर सार्वजनिक तौर पर इन बदलावों पर आपत्ति जताई है, लेकिन सरकार कुछ बदलने को तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी शेल कंपनियों पर कारवाई करने और कितनी कम्पनियां बंद हो गई, इसके आंकड़े अपनी हर चुनावी सभाओं में देते रहे हैं। दरअसल ये इलेक्टोरल बॉन्ड मंदिरों में चढाए जाने वाले गुमनाम या गुप्त दान की तरह हैं जिसका पता सिर्फ देने वाले तक को ही है। एक हज़ार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक का इलेक्टोरल बॉन्ड किसने भेजा, किसको दिया, इसका पता लगाना टेढ़ी खीर है। वह एक तरह से बेनामी कारोबार की तरह फल फूल रहा है।
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