इस बार के लोकसभा चुनावों में प्रचंड जीत के साथ मोदी सरकार की दोबारा वापसी के बाद दूसरी सबसे बड़ी ख़बर अमेठी से राहुल गाँधी की हार है। राहुल की हार की सनसनी इतनी तेज़ रही कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन की असफलता, विपरीत जमीनी समीकरण के बावजूद राज्य में बीजेपी की उल्लेखनीय सफलता जैसी तमाम बातें पीछे छूट गयीं। वैसे भी साल दर साल शिकस्त झेलती कांग्रेस के लिए तो यह हार मानो कोमा में ले जाने जैसी रही है।
फिलहाल सच यही है कि अमेठी से राहुल गाँधी हार गए हैं। उन्होंने इसे स्वीकार भी किया है। बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने अपने काम और लगातार पाँच सालों की मेहनत की बदौलत राहुल को अमेठी से बेदख़ल कर दिया है। यह वही अमेठी है, जहाँ से राहुल गाँधी की जीत का एलान महज औपचारिकता भर होती थी। जहाँ गाँधी परिवार का सूरज आज तक सिर्फ़ एक बार 1977 में अस्त हुआ था।