क्या उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के प्रचार अभियान के दौरान ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने मन बना लिया था कि चुनाव ख़त्म होते ही गठबंधन तोड़ना है? सूत्रों के अनुसार, सात चरणों में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनावों का तीसरा चरण ख़त्म होने तक मायावती को पता लगने लगा था कि पश्चिम को छोड़ कहीं भी गठबंधन की केमिस्ट्री ज़मीन पर उतर नहीं रही है। बसपा के जोनल को-ऑर्डिनेटरों से मिल रहे फ़ीडबैक के आधार पर मायावती ने मान लिया था कि ग़ैर-यादव पिछड़ी जातियाँ ही नहीं, बल्कि कई जगहों पर यादव वोटों में भी बीजेपी सेंध लगा चुकी है।
सोमवार को पार्टी की अंदरुनी समीक्षा बैठक और फिर मंगलवार को लखनऊ में बाकायदा प्रेस से बातचीत में मायावती ने उत्तर प्रदेश में साढ़े पाँच महीनों तक चला समाजवादी-बहुजन समाज पार्टी (सपा-बसपा) गठबंधन आख़िरकार ख़त्म ही कर दिया।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने सपा मुखिया अखिलेश यादव को कैडर बनाने, अपना घर ठीक करने जैसी नसीहतें देते हुए अपनी राहें जुदा कर ली हैं।
पहले से ही उप-चुनाव लड़ने का मन बना लिया था
लोकसभा चुनावों के प्रचार अभियान के दौरान ही बसपा प्रमुख मायावती ने विधानसभा के उप-चुनावों में अपने अलग प्रत्याशी उतारने का मन बना लिया था। आम्बेडकरनगर में रैली के दौरान ही उन्होंने बसपा प्रत्याशी व जलालपुर से विधायक रीतेश पांडे के पिता राकेश पांडे से कह दिया था कि उन्हें विधानसभा उप-चुनाव की भी तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। मायावती ने कुछ ऐसे ही संकेत टूंडला, हमीरपुर की विधानसभा सीटों के लिए भी पहले ही दे दिए थे। बीते दो दशकों से बसपा उप-चुनाव न लड़ने की नीति अपनाए हुए है। इतना ही नहीं, बसपा उप-चुनावों में किसी भी पार्टी को समर्थन भी नहीं देती है। हालाँकि दो साल पहले उत्तर प्रदेश में कैराना, फूलपुर व गोरखपुर में हुए लोकसभा उप-चुनावों में बसपा ने सपा को समर्थन ज़रूर दिया था और वहीं से सपा-बसपा गठबंधन की नींव पड़ी थी।
क्या इसलिए अलग हुईं मायावती?
बसपा सूत्रों की मानें तो लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से मायावती के पास उप-चुनावों के लिए टिकट मांगने वालों की भीड़ आने लगी है। बीते कई सालों से पस्त हाल पार्टी में नयी जान आते देख मायावती ने इस बार उप-चुनाव को हाथ से न जाने देने का फ़ैसला किया। वैसे भी गठबंधन के तहत उप-चुनाव लड़ने की स्थिति में मायावती को 11 विधानसभा में से केवल दो ही सीटें मिलतीं जहाँ उसके प्रत्याशी 2017 में दूसरे नंबर पर रहे थे। इसके अलावा हमीरपुर से विधायक अशोक चंदेल की सदस्यता रद्द हो जाने के बाद उप-चुनाव में वह दावा कर सकती थी। इन हालात में भी मायावती के लिए गठबंधन होने पर दिक्कत ही पेश आती।
जाटव-मुसलमान गठजोड़ के सहारे का भरोसा
उत्तर प्रदेश में जिन 10 लोकसभा सीटों पर बसपा के प्रत्याशी जीते हैं उनमें से छह पर जाट-मुसलमान वोटों का समीकरण उनके लिए मुफीद साबित हुआ है। मायावती का मानना है कि बीजेपी के मुक़ाबले सबसे मज़बूत साबित होने की दशा में उन्हें अल्पसंख्यक समाज का वोट तो मिलेगा ही और इसमें जाटव, अन्य दलित जातियों को मिलाकर अगर सर्वसमाज के प्रत्याशी उतारे जाते हैं तो उन्हें चुनावी फ़ायदा होगा। मायावती का यह भी मानना है कि गठबंधन के बावजूद यादव मतदाताओं में दलितों को लेकर सहजता नहीं है और कई जगहों पर बीजेपी इसमें सेंध लगाने में कामयाब रही है। इतना ही नहीं बल्कि सपा के साथ रहने की वजह से उसे अन्य पिछड़ी जातियों के वोट पाने में भी मुश्किल हो रही है।
बसपा नेताओं का कहना है कि ग़ैर यादव पिछड़ी जातियों के जो वोट बसपा को मिलते थे वह भी सपा के साथ रहने की वजह से इस बार नहीं मिले हैं। शायद एक बार फिर से ग़ैर-यादव पिछड़ी जातियों में घुसपैठ के लिए ही मायावती ने अपनी पार्टी की भाईचारा कमेटियों को सक्रिय किया है।
वोट ट्रांसफर न होना, शिवपाल, कांग्रेस सब बहाना?
गठबंधन में दरार की ख़बरें कल मायावती की लोकसभा चुनाव को लेकर दिल्ली में की गयी समीक्षा बैठक से ही आम हो गयी थीं जब उन्होंने सपा पर अपने वोट ट्रांसफर न करा पाने का आरोप लगाया था। मायावती ने यादव बेल्ट में सपा के हार जाने का ठीकरा फोड़ते हुए कहा था कि कन्नौज, फिरोजाबाद और बदायूँ जैसी सीटों पर हार बता रही है कि सपा का बेस वोट बीजेपी में चला गया। बसपा सुप्रीमो ने यह भी कहा कि शिवपाल यादव ने सजातीय वोट बीजेपी को दिलवाए जबिक कांग्रेस की वजह से भी वोट बँटे। हालाँकि इन आरोपों में कोई दम नज़र नहीं आता। शिवपाल यादव न केवल खुद चुनाव मैदान में हार गए हैं बल्कि उनके किसी भी प्रत्याशी की जमानत तक नहीं बच पायी है। ज़्यादातर जगहों पर शिवपाल को मिले वोटों के कई गुने से ज़्यादा वोटों से बीजेपी जीती है और यही कुछ कांग्रेस के साथ भी हुआ है।
मायावती ने कहा कि इस चुनाव में सपा का बेस वोट यादव समाज अपने यादव-बहुल सीटों पर भी सपा के साथ पूरी मज़बूती के साथ टिका हुआ नहीं रह सका है और सपा की ख़ासकर यादवों की बहुलता वाली सीटों पर मज़बूत उम्मीद्वारों को भी हरा दिया है।
हालाँकि मायावती ने यह नहीं बताया कि यादव वोट नहीं मिले तो उनके प्रत्याशी लालगंज, जौनपुर और गाजीपुर जैसी सीटें कैसे जीते।
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