बिना चुनाव लड़े राज ठाकरे की पार्टी को नोटिस भेज सभाओं के खर्च़ देने की माँग चुनाव आयोग ने की है। इस नोटिस से नये विवाद खड़े होने की आशंकाएँ प्रबल हो गयी हैं। राज ठाकरे की अभी तक कोई प्रतिक्रिया तो नहीं आयी है, लेकिन शरद पवार ने इसे ग़लत बताया है। देश का यह पहला चुनाव होगा जहाँ चुनाव आयोग पर हर दिन कहीं न कहीं आरोप लग रहे हैं और विपक्षी दलों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा तक खटखटाना पड़ रहा है। बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह द्वारा अपने भाषणों में सेना और शहीदों के नाम पर वोट माँगने की हो या प्रधानमंत्री या उनके मंत्रियों के हेलिकॉप्टर की जाँच नहीं करने की, चुनाव आयोग की भूमिका पर सवालिया निशान लगे हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिकार याद दिलाये जाने के बावजूद यदि चुनाव आयोग का रवैया टाल-मटोल भरा है तो यह गंभीर है। चुनाव आयोग के रवैये का एक प्रकरण अब महाराष्ट्र में बड़े विवाद का रूप लेता दिख रहा है।
चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे को एक नोटिस भेजा है। इस नोटिस में उन्होंने कहा है कि राज ठाकरे ने जो सभाएँ प्रदेश के कई हिस्सों में कीं, उसके ख़र्चे का विवरण आयोग को दें।
दरअसल, जैसे ही राज ठाकरे की सभाओं का दौर शुरू हुआ था महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सहित कई मंत्रियों ने चुनाव आयोग से माँग की थी कि वह राज ठाकरे की सभाओं का ख़र्च कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रत्याशियों के ख़र्च में जोड़े। लेकिन उस समय इस मामले में चुनाव आयोग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं हुई या किसी तरह का कोई नोटिस या चेतावनी राज ठाकरे को नहीं दी गयी। लेकिन अब जब महाराष्ट्र में चारों चरण का मतदान समाप्त हो चुका है उसके बाद राज ठाकरे को नोटिस भेजना कई सवालों को जन्म देता है?
क्या चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के दबाव में ऐसा कुछ कर रहा है? यदि राज ठाकरे की सभाएँ आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन थी तो उसी समय उन्हें रोका क्यों नहीं गया?
इस प्रकार का नोटिस भेजकर राज ठाकरे की पार्टी को विधानसभा चुनाव पूर्व किसी क़ानूनी दाँव-पेच में उलझाने का तो कोई खेल नहीं चल रहा, इस प्रकार की चर्चाओं ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है।
दरअसल, राज ठाकरे का इस लोकसभा चुनाव में प्रॉक्सी (परोक्ष) प्रचार था। उनकी पार्टी का कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं था और ना ही उन्होंने किसी पार्टी के लिए वोट माँगे थे। उन्होंने अपनी प्रचार की धुरी केवल नरेंद्र मोदी और अमित शाह के विरोध पर ही केंद्रित रखी थी। वह यह अपील करते थे कि इन दोनों नेताओं को वह राजनीति के क्षितिज पर नहीं देखना चाहते इसलिए आप इन्हें वोट नहीं दें।
प्रॉक्सी प्रचार कोई नयी बात नहीं
दरअसल, प्रॉक्सी प्रचार कोई नयी बात नहीं है। बहुत से चुनावों में विविध सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी, अभिनेता अपने दायरों से बाहर निकलकर लोगों से अपील करते हैं कि वे किसको वोट दें। ये लोग तो किसी पार्टी और प्रत्याशी का नाम लेकर अपील करते हैं जबकि राज ठाकरे के मामले में ऐसा कुछ नहीं था। महाराष्ट्र की राजनीति में भी ऐसे अनेक उदाहरण हैं। राज ठाकरे के चाचा शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने आपातकाल के दौरान कांग्रेस के समर्थन में प्रचार किया था। उसके बाद के एक-दो चुनावों में उन्होंने अपनी पार्टी के प्रत्याशी मैदान में नहीं उतार विरोधियों के ख़िलाफ़ जमकर सभाएँ ली थी। 1977 में महाराष्ट्र के बड़े साहित्यकार पु.ल. देशपांडे, दुर्गा भागवत जैसे ग़ैर राजनीतिक नेताओं ने कांग्रेस के ख़िलाफ़ प्रचार किया था।
राम मंदिर आंदोलन में भी हुआ था ऐसा
लेकिन क्या प्रॉक्सी प्रचार पहली बार चुनाव के दौरान किया जा रहा है? जिसने 1989 यानी राम मंदिर आन्दोलन के दौर का चुनाव प्रचार देखा है उसे इस तरह के प्रचार की याद दिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। उस समय साधु-संतों के रूप में शहर-शहर और गाँव-गाँव प्रचारक पहुँचे थे। धर्म सभाओं में पार्टी विशेष या यूँ कह लें कि भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में लोगों से मतदान की अपील की थी। क्या साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती, आचार्य धमेंद्र ,चिन्मयानन्द की सभाएँ या धर्म सभाएँ इसी प्रकार के प्रॉक्सी प्रचार की श्रेणी में नहीं आती, जो उस दौर में देश भर में की गयी थीं?
बहुत दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। साल 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान रामदेव की सभाएँ भी तो इसी प्रॉक्सी प्रचार का एक रूप रही हैं? क्या वे अपने योग शिविर में राजनीतिक भाषण नहीं करते थे और कालाधन वापस लाने के लिए परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी या नरेंद्र मोदी को मतदान करने की अपील नहीं करते थे? हरियाणा विधान सभा चुनाव प्रचार में भी रामदेव ने इसी तरह से सभाएँ और योग शिविर के माध्यम से लोगों के बीच पार्टी विशेष का प्रॉक्सी प्रचार किया था।
अब ऐसे में राज ठाकरे को चुनाव आयोग ने जो नोटिस भेजा है वह नया राजनीतिक विवाद खड़ा कर सकता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता शरद पवार ने इस मुद्दे पर सवाल खड़ा कर दिया है। पवार ने कहा कि राज ठाकरे की पार्टी ने कोई चुनाव नहीं लड़ा, ऐसे में उनसे ख़र्च का ब्यौरा माँगने का क्या अधिकार है चुनाव आयोग के पास? पवार ने कहा कि पूर्व में भी बहुत से ग़ैर-राजनीतिक नेताओं ने चुनाव के दौरान सभाएँ कर लोगों से अपील की हैं।
अपनी राय बतायें