एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में एक्टिविस्ट गौतम नवलखा की गिरफ्तारी के चार साल से ज़्यादा समय होने के बाद भी अब तक आरोप तय क्यों नहीं हो पाए? जानिए, सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाते हुए क्या राहत दी।
एल्गार परिषद मामले में आरोपी गौतम नवलखा को गिरफ्तारी के 3 साल बाद जमानत को लेकर हाई कोर्ट से राहत मिली, लेकिन तीन हफ्ते की रोक भी लगा दी। जानिए, यह रोक क्यों।
जनपक्षधर पत्रकारों और सोशल एक्टिविस्टो को अर्बन नक्सल कहने वाले कश्मीर फिल्म के डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री ने 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट के जज के खिलाफ आपत्तिजनक ट्वीट किया था। उस टिप्पणी के लिए विवेक रंजन अग्निहोत्री ने आज मंगलवार 6 दिसंबर को कोर्ट से माफी मांग ली। जानिए पूरा ब्यौराः
Satya Hindi news Bulletin सत्य हिंदी समाचार बुलेटिन । टी-20 विश्वकप : भारत हुआ बाहर, इंग्लैंड ने 10 विकेट से हराया। पत्रकार गौतम नवलखा को राहत, SC ने जेल से नजरबंदी में भेजा |
भीमा कोरेगांव मामले में पिछले पांच वर्षों से जेल में कैद पत्रकार गौतम नवलखा को सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राहत दी। उन्हें एक महीने के लिए नजरबंदी में भेजा गया है। लेकिन कुछ शर्तें भी लगाई हैं। जिसमें मोबाइल, इंटरनेट, लैपटॉप के इस्तेमाल की अनुमति नहीं है। पढ़िए पूरी जानकारीः
तलोजा जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नया चश्मा नहीं मिलने के मामले में मुंबई हाई कोर्ट को जेल अधिकारियों को मानवता की याद दिलाना पड़ा है। कोर्ट ने कहा कि सबसे ज़रूरी मानवता है।
भीमा कोरेगाँव से जुड़े एल्गार परिषद केस में जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा का चश्मा चोरी हो गया है और पोस्ट से भेजे गए चश्मे को जेल अधिकारी स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
राष्ट्रवादी कांग्रेस यानी एनसीपी नेता शरद पवार ने अब भीमा कोरेगाँव मामले की जाँच के लिए सही तरीक़े से जाँच के लिए विशेष जाँच दल यानी एसआईटी बनाने की माँग की है।
भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में गौतम नवलखा की याचिक पर सुप्रीम कोर्ट में आख़िरकार सुनवाई हुई। लेकिन इससे पहले एक-एक कर पाँच जजों ने ख़ुद को अलग कर लिया था। अधिकतर जजों ने कोई कारण नहीं बताया था। ऐसा क्यों हुआ? सत्य हिंदी पर देखिए शैलेश की रिपोर्ट।
सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को 15 अक्टूबर तक गिरफ़्तारी से राहत दे दी है। यानी अगली सुनवाई तक उनकी गिरफ़्तारी नहीं हो सकती है।
महाराष्ट्र की पुलिस ने गौतम नवलखा की ग़िरफ़्तारी को आतंकवादियों से संबंध क्यों बता दिया? क्या वह 'अर्बन नक्सल' की बात साबित नहीं कर पाई इसलिए? भीमा कोरेगाँव हिंसा से शुरू कर आतंकवाद से इसे क्यों जोड़ दिया गया? देखिए 'आशुतोष की बात' में क्या है सच!
भीमा कोरेगाँव में 1 जनवरी 2018 को हुई हिंसा, उससे जुड़े लोगों की गिरफ़्तारी के पीछे अर्बन नक्सल और अब आतंकवादी नेटवर्क की जो बात पुलिस कह रही है, उसके मायने बेहद गंभीर हैं।
क्या असहमति के बिना लोकतंत्र संभव है? इस पर सरकारें भले ही घालमेल करती हों, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने साफ़ संदेश दिया है कि असहमति लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।