मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के मामले की सुनवाई से एक के बाद एक 5 जजों के ख़ुद को अलग कर लेने से नया सवाल उठ खड़ा हुआ है। वरिष्ठ जज मदन लोकुर का मानना है कि किसी भी मामले की सुनवाई से किसी जज के ख़ुद को अलग करने की एक प्रक्रिया तय होनी चाहिए। लोकुर ने इसकी वजह बताते हुए कहा कि आजकल इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं, इसलिए इसके लिए भी एक नियम होना चाहिए ताकि कोई जज ख़ुद को किसी मामले से अलग करे तो बेंच के दूसरे जजों के लिए असहज स्थिति न पैदा हो।
लोकुर की यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट के जज एस रवींद्र भट ने गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए खुद को उस बेंच से अलग कर लिया, जिसका गठन इस सुनवाई के लिए किया गया था। नवलखा ने भीमा कोरेगाँव मामले में ख़ुद के ख़िलाफ़ दायर प्राथमिकी खारिज करने के लिए याचिका दायर की है। उन्होंने याचिका में निजी स्वतंत्रता और मौलिक अधिकार की रक्षा करने की गुहार लगाई है।
नवलखा की याचिका पर सुनवाई के लिए तीन जजों के खंडपीठ में जस्टिस अरुण मिश्र और जस्टिस विनीत शरण भी हैं। अब इस मामले की सुनवाई शुक्रवार 4 अक्टूबर को होनी है।
अब तक 5 जजों ने अलग-अलग समय में नवलखा की सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया है। इसमें मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई भी शामिल हैं। इसके अलावा जस्टिस एन. वी. रमण, एन. सुभाष रेड्डी और बी. आर गवई ने भी बेंच से ख़ुद को अलग कर लिया था।
नवलखा की याचिका पर पहली बार सुनवाई 30 सितंबर को होनी थी। उस खंडपीठ की अध्यक्षता रंजन गोगोई कर रहे थे और उसमें एस. ए. बोबडे और एस. अब्दुल नज़ीर भी थे। जस्टिस गोगोई ने ख़ुद को यह कह कर अलग कर लिया था कि उनके पास समय नहीं है। वह उस पाँच-सदस्यीय संवैधानिक खंडपीठ की अध्यक्षता भी कर रहे हैं, जो अयोध्या मामले की रोज़ाना सुनवाई कर रहा है। वह इसी साल 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं।
नवलखा की याचिका पर सुनवाई 1 अक्टूबर को तय हुई। इसे तीन सदस्यों वाले खंडपीठ के सामने रखा जाना था, जिसमें एन. वी. रमण, एन. सुभाष रेड्डी और बी. आर, गवई थे। तीनों ही जजों ने इस मामले की सुनवाई में अनिच्छा जताई थी।
हाई कोर्ट ने 13 सितंबर को नवलखा को अग्रिम ज़मानत देते हुए दो हफ्ते तक उनकी गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी। नवलखा के ख़िलाफ़ प्राथमिकी भीमा कोरेगाँव मामले में दर्ज की गई है। इस मामले में दूसरे अभियुक्त जन कवि वर वर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा और वरनों गोंजाल्विस हैं।
क्या है भीमा कोरेगाँव का मामला?
हर साल जब 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं, वे वहाँ बनाये गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। यह विजय स्तम्भ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था। इस स्तम्भ पर 1818 के युद्ध में शामिल होने वाले महार योद्धाओं के नाम अंकित हैं। ये वे योद्धा हैं जिन्हें पेशवाओं के ख़िलाफ़ जीत मिली थी। कुछ लोग इस लड़ाई को महाराष्ट्र में दलित और मराठा समाज के टकराव की तरह प्रचारित करते हैं और इसकी वजह से इन दोनों समाज में कड़वाहट भी पैदा होती रहती है।
1 जनवरी, 2018
2018 को चूँकि इस युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे और टकराव भी हुआ। इस सम्बन्ध में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिडे और समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे पर आरोप लगे कि उन्होंने मराठा समाज को भड़काया, जिसकी वजह से यह हिंसा हुई। भिडे, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक हैं और एकबोटे भारतीय जनता पार्टी के नेता और विधायक का चुनाव लड़ चुके हैं।हिंसा के बाद दलित नेता प्रकाश आंबेडकर ने इन पर मुक़दमा दर्ज कर गिरफ़्तार करने की माँग की थी। 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एलगार परिषद सम्मेलन हुआ, उसके अगले दिन भीमा कोरेगाँव में हिंसा हुई और 28 अगस्त, 2018 को पुलिस ने वामपंथी कार्यकर्ता के पी. वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनो गोन्जाल्विस को गिरफ़्तार कर लिया।
के. पी. वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनो गोन्जाल्विस के नाम आने के बाद मीडिया में अर्बन नक्सल को लेकर एक बहस छिड़ गयी। इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रो. सतीश पांडे और मानवाधिकार कार्यकर्ता माजा दारूवाला ने इस मामले में देश की शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर इन मानवाधिकार एवं नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई तथा उनकी गिरफ़्तारी की स्वतंत्र जाँच कराने का अनुरोध किया था। 1 अक्टूबर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने नवलखा को नज़रबंदी से मुक्त कर दिया था।
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