मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच होने वाली हिंसा को एक वर्ष पूरे हो चुके हैं। एक वर्ष एक लंबा अरसा होता है लेकिन इसके बावजूद हिंसा और नफरत की आग अब भी बरकरार है। अब भी पूरी तरह से शांति नहीं आई है। पिछले वर्ष 3 मई के बाद ही हिंसा का दौर शुरू हुआ था। तब से लेकर आज तक के बीच 200 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।
अंग्रेजे अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने मणिपुर में एक वर्ष से जारी इस हिंसा पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे बीते एक वर्ष में मणिपुर हिंसा का गवाह बना है।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि पिछले साल 3 मई को, मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच लंबे समय से चला आ रहा तनाव हिंसा में बदल गया था। जिसमें तीन दिनों में कम से कम 52 लोगों की जान चली गई थी।
3 मई 2023 की घटना के एक वर्ष पूरे होने पर मणिपुर में दोनों ही समुदाय इसे अलग-अलग तरीकों से याद कर रहे हैं। अब भी दोनों समुदायों के बीच दूरियां काफी अधिक दिख रही है।
इस एक वर्ष के दौरान यहां जारी हिंसा में 226 लोग मारे जा चुके हैं। इसमें 20 महिलाएं और 8 बच्चे भी शामिल हैं। करीब 1500 घायल हुए हैं। वहीं 60 हजार लोग इस हिंसा के कारण राज्य के भीतर ही विस्थापित हुए हैं। इसके साथ ही 13,247 आवास,दुकान, समेत अन्य संरचनाएं नष्ट हो गई हैं। करीब 28 लोक अब भी लापता हैं जिनके बारे में माना जा रहा है कि या तो उनका अपहरण हुआ है या उनकी हत्या कर दी गई है।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि संघर्ष के पहले सप्ताह के भीतर, व्यापक पैमाने पर हिंसा और आगजनी के बाद, सुरक्षा बलों द्वारा बड़े पैमाने पर जनसंख्या का आदान-प्रदान किया गया।
चुराचांदपुर, कांगपोकपी और मोरेह जैसे कुकी-ज़ोमी बहुल क्षेत्रों में रहने वाले मैतेई लोगों को मैतेई-बहुसंख्यक घाटी में ले जाया गया। इम्फाल जैसे मैतेई बहुल क्षेत्रों में रहने वाले कुकी-ज़ोमिस समुदाय को चुराचांदपुर और कांगपोकपी में ले जाया गया। वहीं कई लोग पड़ोसी राज्य मिजोरम या देश में कहीं और चले गए।
यह सामाजिक और जनसांख्यिकीय विभाजन लगातार बढ़ता जा रहा है। दोनों ही समुदाय में तलहटी क्षेत्र में निरंतर संघर्ष देखने को मिला जहां मैतेई समुदाय के बहुमत वाली घाटी का इलाका कुकी-ज़ोमी बहुसंख्यक आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्र से मिलता है।
यह रिपोर्ट कहती है कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि समय के साथ हिंसा का स्तर कम हुआ है और प्रसार भी कम हुआ है। दरअसल, करीब 40 दिनों तक हिंसा की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी रही।
हालांकि, 13 अप्रैल के बाद से एक बार फिर से हिंसक घटनाओं की बाढ़ आ गई है। जिसमें कांगपोकपी जिले में दो लोगों की हत्या और अंग-भंग की घटना और बिष्णुपुर जिले में सीआरपीएफ चौकी पर एक निर्मम हमले में दो सीआरपीएफ कर्मियों की हत्या की घटना शामिल है।
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सुरक्षाकर्मी भी हुए इस हिंसा का शिकार
इस हिंसा में अपनी जान गंवाने वाले ये दोनों सीआरपीएफ कर्मी केंद्रीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस कर्मियों के उन 16 कर्मियों में से हैं, जो पिछले साल ड्यूटी के दौरान और बाहर हिंसा में मारे गए हैं।द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है इस संघर्ष के दौरान दोनों ही समुदाय के लोगों के मन में सुरक्षाकर्मियों के प्रति संदेह भी बढ़ा है। मैतेई समुदाय असम राइफल और कुकी-जोमिस समुदाय मणिपुर पुलिस कमांडो के खिलाफ पूर्वाग्रह के आरोप लगाते रहे हैं।
मणिपुर में कानून-व्यवस्था के दृष्टिकोण से, सबसे बड़ी चुनौती दोनों ही समुदाय के बीच लूटे हुए हथियारों की मौजूदगी है। एक पुलिस अधिकारी का अनुमान है कि इसमें से अब तक दो हजार हथियार बरामद कर लिए गए हैं लेकिन अब भी करीब चार हजार हथियार नागरिकों के हाथों में हैं।
अधिकारी इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि यहां शांति या समस्या का समाधान जनप्रतिनिधियों द्वारा बातचीत से ही आएगी। हम सशस्त्र उपद्रवियों से निपट सकते हैं लेकिन अगर जनता बीच में आती है और हम पूरी ताकत लगा देते हैं तो इससे नागरिक आबादी को भारी नुकसान होगा। वह इस सप्ताह घटी उस घटना का उदाहरण देते हैं जिसमें महिलाओं के एक समूह ने सेना की हिरासत से 11 बदमाशों को छुड़ा लिया था।
इस रिपोर्ट में असम राइफल के एक अधिकारी के हवाले से भी बताया गया है कि इस संघर्ष को रोकने के लिए इसके राजनैतिक समाधान की आवश्यकता है। सोशल मीडिया पर तनाव पैदा करने वाली गलत सूचना को वह कानून और व्यवस्था बनाए रखने में एक बड़ी बाधा मानते हैं।
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