सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पाँच माननीय न्यायाधीशों की पीठ ने 1045 पृष्ठों के अपने ऐतिहासिक फ़ैसले में कहा कि उन्होंने यह फ़ैसला इतिहास, विचारधारा, धार्मिक विश्वास या आस्था के आधार पर नहीं अपितु क़ानून के आधार पर किया है। उन्होंने भारतीय संविधान के बुनियादी उसूलों की भी चर्चा की है कि हमारे संविधान की रोशनी में क़ानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं, चाहे वे किसी भी धर्म, संप्रदाय, विश्वास या विचार के हों! माननीय न्यायाधीशों ने बिल्कुल सही कहा है। लेकिन अयोध्या के मंदिर-मसजिद विवाद पर उनके एकमत फ़ैसले का आधार क्या वाक़ई सिर्फ़ क़ानून है, इसमें आस्था, विश्वास, कथा या इतिहास, किसी भी अन्य पहलू की कोई भूमिका नहीं है? मैं कोई क़ानूनविद् या विधिशास्त्र का छात्र नहीं हूँ। एक आम नागरिक और पत्रकार के नाते इस ऐतिहासिक फ़ैसले के सबसे अहम् हिस्सों को पढ़ने के बाद मेरे दिमाग में पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के उक्त दावे पर कुछ सवाल उठते हैं।