लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिलने के बाद अब नरेंद्र दामोदरदास मोदी के नेतृत्व में 58 सदस्यीय मंत्रिपरिषद का गठन हो चुका है। चुनावों में धांधली की ढेर सारी कहानियाँ सामने आ रही हैं। पर हमारे मौजूदा लोकतंत्र, निर्वाचन आयोग और समस्त न्यायिक संरचना में ऐसी कहानियों का अब ज़्यादा मतलब नहीं है। शायद आम लोगों के लिए भी इनका ज़्यादा महत्व नहीं। कुछ खोजी रपटकारों और अपनी शर्मनाक हार से पस्त पड़े कुछ विपक्षियों की इनमें दिलचस्पी हो सकती है।
नयी सरकार में बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह भारत के गृह मंत्री बन गये हैं। ‘नार्थ ब्लॉक’ में उन्हें पदस्थापित करने के लिए राजनाथ सिंह को निर्मला सीतारमण का उत्तराधिकारी बनाकर ‘साउथ ब्लॉक’ भेजा गया है। सीतारमण लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे अरुण जेटली की जगह देश की वित्त मंत्री बन गई हैं।

गाँधी-नेहरू-भगत सिंह और अंबेडकर आदि की महान विरासत के ध्वजवाहक कहीं नहीं दिखते। उनके नाम पर कुछ लोग, कुछ दल और कुछ मोर्चेबंदियां भर हैं। पर जनता में उनका वैसा जनाधार नहीं हैं, जैसा आज संघ-बीजेपी का है। इसलिए इस आशंका को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता कि मौजूदा सत्ताधारी आज़ादी के पचहत्तरवें साल यानी 2022 के आते-आते भारत के मौजूदा राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य को अपनी पसंद के अनुसार ढालना चाहें!