23 मई की दोपहर से अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी की अभूतपूर्व जीत पर काफ़ी कुछ लिखा और कहा जा चुका है। टिप्पणीकारों/व्याख्याकारों का एक हिस्सा इस शानदार जीत की व्याख्या जश्नी अंदाज में कर रहा है। यह उसे ‘भारत की आत्मा की जीत’ नज़र आ रही है, मानो जो नहीं जीते, वे ‘भारत की आत्मा’ का हिस्सा ही न हों! व्याख्याकारों का दूसरा हिस्सा इस जीत पर रुदन कर रहा है, मानो इस जीत से ‘भारत की मूल संकल्पना’ ही ख़त्म हो जाएगी या कि भारत की जनता अपने सारे दुख-दर्द और अपने वास्तविक मसलों को हमेशा के लिए भूल जायेगी और जनतंत्र बचाने के लिए आगे नहीं आयेगी!