चुनाव आ रहे हैं, इसलिए ट्विटर अब गाँव का रुख़ करेगा। उसका इरादा गाँवों, क़स्बों और छोटे शहरों में रहने वाले 19 करोड़ लोगों को अपने साथ जोड़ने का है। इसके लिए ट्विटर जगह-जगह रोड शो करेगा, क्षेत्रीय भाषाओं के ब्लॉगरों को अपने साथ लेगा और लोगों को सिखाएगा कि ट्विटर के प्लेटफ़ार्म का इस्तेमाल वह कैसे कर सकते हैं। अपने देश में लोगों की राजनीति में गहरी रुचि है। चुनावों के समय ख़ासतौर पर चौपालों से लेकर चाय के खोखों तक हर जगह चुनावी चर्चा गर्म रहती है। इसीलिए ट्विटर इस मौक़े का फ़ायदा उठा कर अपनी पहुँच गाँवों, क़स्बों और उन छोटे शहरों तक बढ़ाना चाहता है, जहाँ अभी बहुत कम लोग ट्विटर इस्तेमाल करते हैं या इसके बारे में कुछ जानते हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले ट्विटर चला गाँव की ओर
- सोशल मीडिया
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- 31 Dec, 2018
ट्विटर अब गाँव का रुख़ करेगा। उसका इरादा गाँवों, क़स्बों और छोटे शहरों में रहने वाले 19 करोड़ लोगों को अपने साथ जोड़ने का है।

ट्विटर अभी तक बड़े और मँझोले शहरों तक ही था और आमतौर पर इस पर अंग्रेज़ी का ही दबदबा था। यही वजह है कि फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप के मुक़ाबले ट्विटर इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफ़ी कम है। ट्विटर सिर्फ़ तीन करोड़ लोग इस्तेमाल करते हैं, जबकि फ़ेसबुक पर 29 करोड़ और व्हाट्सऐप पर 20 करोड़ लोग सक्रिय हैं। हाल के विधानसभा चुनाव में ट्विटर पर हिंदी और तेलुगु भाषी लोगों की बढ़ी सक्रियता से ट्विटर को यह आइडिया आया है कि लोकसभा चुनावी के दौरान अगर वह दस भारतीय भाषाओं में अपना फैलाव करे, तो शायद उसे अच्छी सफलता मिल सकती है।