लोकसभा चुनाव ज़्यादा दूर नहीं हैं और बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए ‘मिशन 123’ पर काम शुरू कर दिया है। आपके मन में सवाल उठा होगा कि यह ‘मिशन 123’ क्या है। आइए, आपको बताते हैं कि यह क्या है। इसके तहत पार्टी ने देश भर में 123 ऐसी लोकसभा सीटों की पहचान की है जहाँ उसे 2014 में प्रचंड मोदी लहर में भी हार मिली थी। बीजेपी नए साल के 100 दिनों में इन्हीं 123 सीटों पर फ़ोकस करेगी और पीएम नरेंद्र मोदी के सरकारी कार्यक्रमों और जनसभाओं के जरिये इन सीटों के मतदाताओं तक पहुँचने की कोशिश करेगी।
हाल ही में तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी को हार मिली है। इन तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल 65 सीटें हैं और पिछली बार उसे इनमें से 62 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में ऐसा होना संभव नहीं लगता, क्योंकि अब तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। हालाँकि चुनावी गणित इतना सीधा नहीं होता, लेकिन अगर मान लें कि लोकसभा चुनाव में भी दोनों पार्टियों का वोट प्रतिशत वही रहे जितना कि विधानसभा चुनाव में था, तो इन तीन राज्यों में कांग्रेस 2019 के चुनाव में 28 से 30 सीटें जीत सकती है। यानी बीजेपी की इतनी सीटें कम हो सकती हैं।
2014 जैसे नहीं हैं हालात
बीजेपी जानती है कि उसके लिए स्थितियाँ पिछले चुनाव जैसी नहीं हैं। इन तीन राज्यों में हार के अलावा, पंजाब में उसकी सरकार नहीं है, हरियाणा में वह अपने सांसद राजकुमार सैनी की बग़ावत से परेशान है। उत्तर प्रदेश में पिछली बार उसे 73 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन इस बार सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन अगर बनता है तो पार्टी के लिए निश्चित रूप से पिछला प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होगा। इसका आभास उसे कैराना, गोरखपुर और फूलपुर के चुनाव में हो चुका है। इसलिए यह तो तय है कि इन सभी राज्यों में 2014 में बीजेपी को जितनी लोकसभा सीटें मिली थीं उनमें कुछ कमी तो आएगी ही। इसलिए बीजेपी की कोशिश है कि इन राज्यों में होने वाले संभावित नुक़सान की भरपाई उन सीटों से की जाए, जहाँ वह पिछले लोकसभा चुनाव में हारी थी।पार्टी नेताओं को दी ज़िम्मेदारी
पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक़, 20 राज्यों में फैली लोकसभा की इन 123 सीटों को जीतने के लिए विशेष रणनीति बनाई गई है। पार्टी ने इन 123 सीटों को 25 हिस्सों में बाँटा है और एक हिस्से की ज़िम्मेदारी एक नेता को दी गई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी के सात अलग-अलग मोर्चों को इसकी ज़िम्मेदारी दी गई है कि वे महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और युवाओं तक पहुँचें और उन्हें सरकार की नीतियों को बताते हुए पार्टी से जोड़ने की कोशिश करें। प्रत्येक मोर्चे को इसके लिए लक्ष्य दिया गया है।इसका एक कारण यह भी है कि इन 123 सीटों में पार्टी को अपना सांसद न होने के कारण स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी रुझान का डर नहीं है। बीजेपी की रणनीति है कि वह इन सीटों पर मोदी के चेहरे का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करे और चुनाव में इसके सहारे वोट बटोर सके।
इन 123 सीटों में से 77 सीटें, पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा में हैं और पार्टी यहाँ ज़्यादा से ज़्यादा कार्यक्रम कर रही है। बीजेपी की इस रणनीति की झलक पिछले हफ़्ते मिली, जब पीएम मोदी 24 दिसंबर को उड़ीसा और 25 दिसंबर को असम में आयोजित कार्यक्रमों में पहुँचे। मोदी 4 जनवरी को एक बार फिर असम और 5 जनवरी को ओड़ीशा पहुँचेंगे।
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