कैफ़ी आज़मी, तरक्कीपसंद तहरीक के अगुआ और उर्दू अदब के अज़ीम शायर थे। कैफ़ी आज़मी का जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के छोटे से गाँव मिजवाँ में 14 जनवरी, 1919 को एक ज़मींदार परिवार में हुआ। बचपन में ही वह शायरी करने लगे थे। ग्यारह साल की उम्र में लिखी गयी उनकी पहली ग़ज़ल थी-
कैफ़ी आज़मी की पुण्यतिथि: बहार आये तो मेरा सलाम कह देना...
- पाठकों के विचार
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- 29 Mar, 2025

आज यानी 10 मई को शायर-गीतकार कैफ़ी आज़मी की पुण्यतिथि है।
इतना तो ज़िंदगी में किसी की ख़लल पड़ेहँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़ेजिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़मयूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े।
इस ग़ज़ल को आगे चलकर ग़ज़ल गायिका बेग़म अख्तर ने अपनी मखमली आवाज़ दी। जो कि उस ज़माने में ख़ूब मक़बूल हुई।
शायरी की ओर उनका रुझान कैसे हुआ, यह कैफ़ी की ही ज़ुबानी, ‘मैंने जिस माहौल में जन्म लिया, उसमें शायरी रची-बसी थी, पूरी तरह। मसलन, मेरे पाँच भाइयों में से तीन बड़े भाई बाक़ायदा शायर थे। मेरे वालिद ख़ुद शायर तो नहीं थे, लेकिन उनकी शायरी का जौक बहुत बुलंद था और इसकी वजह से घर में तमाम उर्दू, फ़ारसी के उस्तादों के दीवाने मौजूद थे, जो उस वक़्त मुझे पढ़ने को मिले, जब कुछ समझ में नहीं आता था। जिस उम्र में बच्चे आम तौर पर ज़िद करके, अपने बुजुर्गों से परियों की कहानियाँ सुना करते थे, मैं हर रात ज़िद कर के अपनी बड़ी बहन से मीर अनीस का कलाम सुना करता था। उस वक़्त मीर अनीस का कलाम समझ में तो खाक आता था लेकिन उसका असर दिल-ओ-दिमाग में इतना था कि जब तक मैं दस-बारह बन्द उस मरसिए के रात को न सुन लेता था तो मुझे नींद नहीं आती थी। इन हालात में मेरी ज़हनी परवरिश हुई और इन्हीं हालात में शायरी की इब्तिदा हुई।’