राजस्थान में कैबिनेट का विस्तार कब होगा, यह सवाल एक अबूझ पहेली बनाता जा रहा है। कांग्रेस हाईकमान ने तीन दिन के अंदर दो बड़े नेताओं को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास भेजा है। रविवार को हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष कुमारी शैलजा गहलोत से मिली थीं तो मंगलवार को कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार गहलोत से मिले। माना जा रहा है कि दोनों नेताओं ने पार्टी हाईकमान क्या चाहता है, इस बारे में गहलोत को बता दिया है।
पंजाब, उत्तराखंड में कांग्रेस हाईकमान ने जिस तरह संगठन के मसलों को सुलझाया था, उसके बाद लग रहा था कि जुलाई के आख़िर में गहलोत कैबिनेट का विस्तार हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जयपुर पहुंचे थे माकन
कुछ दिन पहले ही राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी अजय माकन राज्य के दो दिन के दौरे पर जयपुर पहुंचे थे और इस दौरान उन्होंने कांग्रेस के सभी विधायकों से एक-एक करके मुलाक़ात की थी। वह कांग्रेस संगठन के आला पदाधिकारियों से भी मिले थे। उसके बाद कहा गया था कि मंत्रिमंडल विस्तार के मुद्दे पर आम सहमति बन गई है और अब इस बारे में अंतिम फ़ैसला कांग्रेस हाईकमान को लेना है।
लेकिन जब सब कुछ ठीक होता दिख रहा था तो फिर दो बड़े नेताओं को गहलोत से मिलने क्यों भेजा गया। क्या माकन की सारी कवायद फ़ेल हो गयी। जबकि माकन कहते रहे हैं कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। लेकिन वह जल्द अभी तक नहीं आ सका है।
माकन ने कहा था कि कुछ मंत्री ऐसे हैं, जो संगठन में काम करना चाहते हैं। लेकिन जो भी मसला हो, पार्टी हाईकमान को हरियाणा और दूर बेंगलुरू से एक नेता को राजस्थान भेजना पड़ा, इससे लगता है कि मामला गंभीर है।
संकटमोचक हैं शिवकुमार
डीके शिवकुमार को कर्नाटक कांग्रेस का संकटमोचक माना जाता है। कर्नाटक में जब तक कांग्रेस-जेडीएस की सरकार चली, इसमें डीके शिवकुमार का अहम योगदान रहा था। साल 2019 में शिवकुमार को जब ईडी ने गिरफ़्तार किया था तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तिहाड़ जेल में जाकर उनसे मिली थीं।
इससे डीके शिवकुमार की सियासी हैसियत का पता चलता है। गुजरात में राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता अहमद पटेल को जिताने में भी शिवकुमार का अहम रोल रहा था। शिवकुमार को गहलोत से मिलने भेजना बड़ा घटनाक्रम है।
कहां अटकी है बात?
आख़िर बात कहां अटकी है। मंत्रिमंडल विस्तार में देरी की वजह से पायलट समर्थकों का सब्र भी जवाब दे रहा है। बता दें कि ख़ुद पायलट इस बात को लेकर नाराज़गी जता चुके हैं कि भरोसा दिए जाने के एक साल बाद भी उनसे किए गए वादों को पूरा नहीं किया गया है।
बीते कुछ महीनों में पायलट कैंप के विधायकों के भी नाराज़गी भरे सुर सामने आए हैं। पायलट समर्थक विधायक हेमाराम चौधरी ने विधानसभा से इस्तीफ़ा दे दिया था तो एक और समर्थक विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने नाराज़गी ज़ाहिर की थी।
राजस्थान कैबिनेट में 9 पद खाली हैं और ख़बरों के मुताबिक़, पायलट चाहते हैं कि उनके 5 समर्थकों को जगह दी जाए। इसके अलावा आयोगों, निगमों के साथ ही कांग्रेस संगठन में नियुक्तियां की जानी हैं।
पायलट पिछले साल अपने समर्थक 18 विधायकों के साथ मानेसर के एक होटल में आ गए थे। तब पायलट और गहलोत खेमों के बीच एक महीने तक टकराव चला था और कांग्रेस हाईकमान को दख़ल देकर इसे टालना पड़ा था।
भारी पड़ी थी बग़ावत
राजस्थान में दिसंबर, 2018 में विधानसभा के चुनाव हुए थे और तब पायलट समर्थकों की मांग थी कि उनके नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। पायलट तब प्रदेश अध्यक्ष थे। सरकार बनने पर उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन बग़ावत के बाद उनके हाथ से ये दोनों अहम पद चले गए थे।
कहा जा रहा है कि राजस्थान में कैबिनेट के विस्तार के बाद पार्टी गहलोत को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर गुजरात या राजस्थान का प्रभारी बना सकती है।
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