कोरोना का डेल्टा वैरिएंट जैसे-जैसे दुनिया में फैल रहा है कोरोना का नये सिरे से ख़तरा बढ़ता जा रहा है। बचने का एक तरीक़ा है वैक्सीन। लेकिन वैक्सीन तो पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं है। और है भी तो उन देशों के पास जो संपन्न और तकनीकी तौर पर उन्नत हैं। यानी साफ़ कहें तो अमेरिका, यूरोपीय देश, चीन और दूसरे विकसित देश तो टीके लगा लेंगे, लेकिन एशिया और अफ्रीका के उन ग़रीब मुल्कों का क्या होगा जो न तो आर्थिक रूप से सक्षम हैं और न ही तकनीकी तौर पर इतने विकसित कि वे वैक्सीन बना या खरीद लेंगे। यही वजह है कि अधिकतर विकसित देश जहाँ अपनी 50 फ़ीसदी से भी ज़्यादा आबादी को पूरे टीके लगा चुके हैं वहीं कई ग़रीब देशों में तो एक फ़ीसदी भी टीके नहीं लगाए जा सके हैं। यानी एक बड़ी आबादी के सामने कोरोना के ख़तरे का सामना करने के लिए कोई चारा नहीं है।
इसका नतीज़ा इंडोनेशिया, बांग्लादेश जैसे देशों में दिख भी रहा है। इंडोनेशिया में हर रोज़ 30-40 हज़ार संक्रमण के मामले आ रहे हैं। वहाँ सिर्फ़ 7.9 फ़ीसदी लोगों को ही टीके लगाए जा सके हैं। बांग्लादेश में भी हर रोज़ 21 हज़ार से ज़्यादा संक्रमण के मामले आ रहे हैं और वहाँ सिर्फ़ 2.6 फ़ीसदी लोगों को टीके लगाए जा सके हैं।
वियतनाम में वैक्सीन लेने योग्य आबादी के सिर्फ़ 0.7 फ़ीसदी लोगों को और ताइवान में 1.7 फ़ीसदी लोगों को ही पूरी तरह से टीके लगाए जा सके हैं। ब्लूमबर्ग वैक्सीन ट्रैकर के अनुसार, आइवरी कोस्ट में 0.4, नामीबिया में 2, रिपब्लिक ऑफ़ कांगो में 1.4, तुर्कमेनिस्तान में 0.2, चाड में 0.1, रवांडा में 1.8, नेपाल में 4 फ़ीसदी आबादी को ही टीके लगाए जा सके हैं। ऐसे देशों में संक्रमण के मामले बढ़ने लगे हैं। वियतनाम में क़रीब 8500, अफ़ग़ानिस्तान में क़रीब 7000, बांग्लादेश में 21 हज़ार, क्यूबा में क़रीब 10 हज़ार, लीबिया में 2100 से ज़्यादा संक्रमण के मामले हर रोज़ आने लगे हैं।
इसकी तुलना में विकसित और संपन्न देशों में टीकाकरण काफ़ी तेज़ी से हुआ है। यूरोपीय यूनियन की वैक्सीन के योग्य कुल आबादी का 50.4 फ़ीसदी लोगों को दोनों टीके लगाए जा चुके हैं। जर्मनी में 52.6 फ़ीसदी, फ्रांस में 55.6, इंग्लैंड में 57.8, इटली में 54.7, स्पेन में 59, कनाडा में 56.4, अमेरिका में 49.7, बेल्जियम में 60.6, नीदरलैंड्स में 45.8 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी को दोनों टीके लगाए जा चुके हैं।
भारत में भी 7.8 फ़ीसदी आबादी को टीके लगाए जा चुके हैं। चीन के बारे में आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन वह दुनिया में सबसे ज़्यादा वैक्सीन लगाने वाला देश है।
दुनिया भर में लगाए गए 4 अरब 21 करोड़ टीकों में से 1.68 अरब तो अकेले चीन में ही लगाए गए हैं। दुनिया के किसी भी देश में इसके आधे भी टीके नहीं लगाए जा सके हैं। भारत में तो 50 करोड़ टीके भी नहीं लगाए जा सके हैं।
वैक्सीन के संभावित ऐसे हालात के मद्देनज़र ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने ग़रीब देशों के लिए ‘कोवैक्स’ नामक अभियान शुरू किया। इसके तहत उन देशों को 2 अरब वैक्सीन की डोज उपलब्ध करायी जानी है जो अपने दम पर या तो वैक्सीन नहीं बना सकते हैं या फिर वैक्सीन निर्माताओं से समझौते नहीं कर सकते हैं। यह मानवीय क़दम है और इसमें संपन्न देशों की भागीदारी की बात कही गई थी। लेकिन कई देशों ने इसमें अपेक्षित रूप से सही समय पर योगदान नहीं दिया और इस वजह से टीके असंतुलित रूप से देशों में लगाए गए। ऐसा तब है जब विश्व स्वास्थ्य संगठन या डब्ल्यूएचओ साफ़ तौर पर कहता रहा है कि जब तक पूरी दुनिया से कोरोना ख़त्म नहीं होगा तब तक पूरी दुनिया पर ख़तरा मंडराता रहेगा।
अब ऐसे ख़तरे के संकेत भी मिल रहे हैं। कोरोना के जो नये वैरिएंट आ रहे हैं वे कोरोना के दोनों टीके लगाए लोगों को भी संक्रमित कर सकते हैं। इस मामले में डेल्टा वैरिएंट काफ़ी घातक है। इस वैरिएंट के फैलने के बाद अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड जैसे देशों में भी संक्रमण फिर से तेज़ी से फैल रहा है।
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