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पाकिस्तान-राजस्थान (भारत) बॉर्डर।

राजस्थानः चुनाव से पहले पाक सीमा पर मुस्लिम प्रोफाइलिंग क्यों

केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों को राजस्थान में पाकिस्तान की सीमा पर मुस्लिम आबादी वाले इलाकों के निवासियों की "आबादी और आर्थिक प्रोफाइल" तैयार करने के लिए कहा गया है। यह जानकारी द टेलीग्राफ अखबार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के हवाले से दी है।

सरकार का यह कदम विवाद को जन्म दे सकता है। क्योंकि पाकिस्तान-राजस्थान सीमा पर ज्यादातर मुस्लिम गांव हैं। मुसलमानों की धार्मिक प्रोफाइलिंग नए आरोपों को जन्म दे सकता है। कांग्रेस शासित राजस्थान में 2023 में विधानसभा हैं। उससे पहले इस तरह का कदम विवादास्पद हो सकता है। पश्चिम बंगाल में भी 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले इसी तरह की कवायद केंद्र सरकार ने की थी। इससे वहां कई विवाद हुए।

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इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक पूर्व संयुक्त निदेशक ने द टेलीग्राफ अखबार को बताया, मुझे उम्मीद है कि यह विधानसभा चुनावों से पहले लोगों का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की बड़ी रणनीति का हिस्सा नहीं है। हालांकि गृह मंत्रालय के सूत्रों ने इसे एक "रेगुलर अभ्यास" करार दिया। जिसका मकसद कट्टरपंथी तत्वों और सीमा पर तमाम गतिविधियों पर नज़र रखना है।

द टेलीग्राफ के मुताबिक गृह मंत्रालय के अधिकारी ने कहा - इस तरह के अभ्यास सुरक्षा एजेंसियों द्वारा नियमित रूप से किए जाते हैं। इसका उद्देश्य संवेदनशील सीमा पर गतिविधियों की बारीकी से निगरानी करना और कट्टरपंथी तत्वों की उपस्थिति का पता लगाना है। यह सुरक्षा के दृष्टिकोण से गंभीरता से किया जाता है और किसी को इसमें बहुत अधिक नहीं देखना चाहिए।
यह पूछे जाने पर कि क्या सीमाओं के पास हिंदू बहुल इलाकों में भी इस तरह की कवायद की जा रही है, अधिकारी ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

सुरक्षा एजेंसियों ने मार्च-अप्रैल विधानसभा चुनावों से पहले नवंबर 2020 में बंगाल में इसी तरह का सर्वेक्षण किया था, ताकि बांग्लादेश सीमा पर मुसलमानों की बड़ी संख्या वाले क्षेत्रों में आबादी के पैटर्न का पता लगाया जा सके।
बंगाल चुनाव में बीजेपी ने ध्रुवीकरण अभियान चलाया। जिसमें राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी), बांग्लादेश से "घुसपैठ", और ममता बनर्जी की " मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति" जैसे मुद्दों को बीजेपी ने खूब उछाला था।
आईबी के पूर्व संयुक्त निदेशक ने कहा कि अगर इस तरह के सर्वेक्षणों के पीछे सुरक्षा मकसद था, तो यह सभी सीमावर्ती क्षेत्रों में किया जाना चाहिए, भले ही निवासियों का धर्म कुछ भी हो। इस तरह के अभ्यास के लिए एक समुदाय को बाहर क्यों करें? इस तरह के सर्वेक्षण अल्पसंख्यकों के मन में डर पैदा करने के लिए होते हैं। हम लोग देख रहे हैं कि देश की सत्ताधारी पार्टी विभाजनकारी राजनीति में लिप्त है।

द टेलीग्राफ के मुताबिक 2018 में, सीमा सुरक्षा बल पर धार्मिक प्रोफाइलिंग के आरोप लगे थे। उसने उस समय कहा था कि उसने राजस्थान के जैसलमेर में पाकिस्तान सीमा के पास मुस्लिम आबादी में अप्रत्याशित वृद्धि को देखते हुए एक रिपोर्ट तैयार की थी।

बीएसएफ की खुफिया शाखा द्वारा तैयार की गई और केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट में उन इलाकों में पूजा स्थलों में वृद्धि पर भी चिंता व्यक्त की गई है। इसने कहा था कि इन क्षेत्रों में "कट्टरपंथी तत्व" मौजूद थे, और उन पर स्थानीय लोगों से सैन्य गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश करने का संदेह था।

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क़मर वहीद नक़वी
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