लगता है कि राजस्थान में राजनीतिक संकट अब अशोक गहलोत और सचिन पायलट से शिफ़्ट होकर गहलोत सरकार और राज्यपाल के बीच हो गया है। विधानसभा सत्र बुलाए जाने के गहलोत सरकार के दूसरे प्रस्ताव को राज्यपाल कलराज मिश्र द्वारा खारिज किए जाने के बाद राजनीतिक गहमागहमी और बढ़ गई। दरअसल, यह गहमागहमी इस प्रस्ताव को खारिज किए जाने के कारणों को लेकर बढ़ी है। राज्यपाल ने बयान जारी कर कहा है कि सैद्धांतिक रूप से वह विधानसभा सत्र बुलाए जाने के विरोध में नहीं हैं। उन्होंने कोरोना संकट का ज़िक्र करते हुए तीन शर्तें रखी दीं। इन शर्तों के अनुसार विधानसभा सत्र तीन हफ़्ते तक नहीं बुलाया जा सकता है। अब ज़ाहिर है गहलोत सरकार को यह पसंद नहीं आएगा क्योंकि उन्हें फ़्लोर टेस्ट कर छह माह के लिए सरकार को सुरक्षित करना है।
यही वजह है कि अब सबकी निगाहें विधानसभा सत्र के समय पर टिक गई हैं। लेकिन विधानसभा सत्र बुलाए जाने के लिए राज्यपाल ने अब जो तीन शर्तें रखी हैं उससे तनाव और बढ़ने की ही संभावना है। राज्यपाल ने कहा है-
- कि विधायकों को कोरोना संकट के बीच इतने शॉर्ट नोटिस पर बुलाना मुश्किल होगा तो क्या उन्हें नोटिस के लिए 21 दिन का समय नहीं दिया जाना चाहिए?
- फ़िजिकल डिस्टेंसिंग का कैसे पालन किया जाएगा?
- कि क्या मुख्यमंत्री विश्वास मत को लाना चाहते हैं, क्योंकि प्रस्ताव में इसका ज़िक्र नहीं है और लोगों के बीच मुख्यमंत्री बयान दे रहे हैं कि वह विश्वास मत लाना चाहते हैं?
बता दें कि विधानसभा सत्र बुलाने के लिए गहलोत सरकार का पहला प्रस्ताव ज़ाहिर तौर पर फ़्लोर टेस्ट के लिए ही था। लेकिन राज्यपाल ने उस प्रस्ताव को छह कारणों का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था। तब राज्यपाल ने एक कारण यह भी दिया था कि इस मामले में सुनवाई अदालत में हो रही है। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा था कि विधानसभा का एजेंडा क्या होगा और तारीख क्या होगी, वह भी नहीं बताया गया था।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शुक्रवार को जल्द से जल्द विधानसभा सत्र बुलाने की माँग को लेकर राज्यपाल कलराज मिश्र के घर पर चार घंटे से अधिक समय तक विरोध प्रदर्शन किया था।
कुछ बिंदुओं पर सफ़ाई माँगने के साथ ही विधानसभा सत्र बुलाने का राज्यपाल ने आश्वासन दिया तो कांग्रेस का समर्थन कर रहे विधायकों ने अपना धरना ख़त्म किया था।
इसके बाद गहलोत सरकार ने दूसरा प्रस्ताव भेजा। इस प्रस्ताव में पहले के इसके प्रस्ताव को खारिज किए जाने के कारणों का ध्यान रखा गया। राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका वापस ले ली है। बताया जाता है कि विधासभा सत्र बुलाए जाने में कोई अड़चन नहीं आए, इसलिए यह फ़ैसला लिया गया।
इसके साथ ही इस दूसरे प्रस्ताव में गहलोत सरकार ने 31 जुलाई से विधानसभा सत्र के लिए तारीख़ बताई और कोरोना वायरस और दूसरे बिल पर चर्चा का एजेंडा बताया। हालाँकि, प्रस्ताव में फ़्लोर टेस्ट का कोई ज़िक्र नहीं था। इसके बावजूद राज्यपाल ने इस दूसरे प्रस्ताव को अन्य कारणों का हवाला देकर खारिज कर दिया।
बता दें कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लगता है कि सचिन पायलट और उनके गुट के 18 विधायकों के बाग़ी हो जाने के बाद भी उनके पास बहुमत है। इसीलिए वह विधानसभा में बहुमत करना चाहते हैं। यदि अदालत के आदेश की यथास्थिति के दौरान विश्वास मत आयोजित किया जाता है, तो बाग़ी विधायकों को अयोग्य ठहराया जा सकता है यदि वे अपनी ही पार्टी के ख़िलाफ मतदान करते हैं। लेकिन जब तक विधानसभा सत्र नहीं बुलाया जाएगा तब तक यह संभव नहीं है।
यही कारण है कि जब राज्यपाल विधानसभा सत्र के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दे रहे हैं तो गहलोत रोष व्यक्त कर रहे हैं। गहलोत शुक्रवार को आक्रामक अंदाज़ में सामने आए थे। तब राजभवन से बाहर निकलने के बाद गहलोत ने पत्रकारों से कहा था, 'मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि बिना ऊपर के दबाव के राज्यपाल विधानसभा सत्र रोक नहीं सकते थे। राज्यपाल को संवैधानिक दायित्व निभाना चाहिए।’ गहलोत ने कहा कि यहाँ उल्टी गंगा बह रही है, हम कह रहे हैं कि हम सत्र बुलाएँगे, अपना बहुमत साबित करेंगे लेकिन सत्र नहीं बुलाया जा रहा है।
अब फिर से जब विधानसभा के सत्र का प्रस्ताव खारिज हुआ है तो गहलोत ने राज्यपाल कलराज मिश्र के व्यवहार को लेकर प्रधानमंत्री मोदी से बात की है।
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