याद दिला दें कि सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अरुण मिश्रा ने बीते हफ़्ते नोटिस जारी कर प्रशांत भूषण से पूछा है कि उनके ख़िलाफ़ अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए।
ट्वीट पर नोटिस
अदालत ने ट्विटर इंडिया से पूछा है कि जब अवमानना की कार्रवाई होना दिखने लगा तब भी इसने भूषण के ट्वीट को क्यों नहीं हटाया? शीर्ष अदालत ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को सहायता के लिए एक नोटिस जारी किया।131 लोगों ने एक साझा बयान में कहा है कि लोगों को अदालत की अवमानना या बदले की कार्रवाई के डर के बग़ैर सर्वोच्च अदालत पर बहस करने की छूट होनी चाहिए।
बयान में कहा गया है, 'पिछले कुछ वर्षों से यह देखा जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय सरकार की ज़्यादतियों को रोकने और लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने से जुड़े अपने संवैधानिक कर्तव्य के निर्वहन में नाकाम रहा है।'
क्या है बयान में?
इस बयान में आगे कहा गया है, 'इस तरह के सवाल मीडिया, सामाजिक संगठन, अकादमिक जगत, विधि व्यवस्था से जुडे़ लोग और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज तक उठा चुके हैं।'
इस बयान में अपील की गई है कि सुप्रीम कोर्ट पारदर्शी और खुले रूप से लोगों से संवाद करे। यह भी कहा गया है कि प्रशांत भूषण को अवमानना नोटिस देना आलोचन की आवाज़ को दबाने की कोशिश है।
प्रशांत भूषण ने क्या कहा था?
बता दें कि भूषण ने ट्वीट किया था, 'जब भविष्य के इतिहासकार पिछले 6 वर्षों को देखेंगे कि औपचारिक आपातकाल के बिना भी भारत में लोकतंत्र कैसे नष्ट कर दिया गया है तो वे विशेष रूप से इस विनाश में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को चिह्नित करेंगे, और विशेष रूप से अंतिम 4 प्रधान न्यायाधीशों की भूमिका।'
उनका दूसरा ट्वीट सीजेआई को लेकर था जिसमें एक तसवीर में वह नागपुर में एक हार्ले डेविडसन सुपरबाइक पर बैठे हुए दिखे थे। यह ट्वीट 29 जून को पोस्ट किया गया था। इस ट्वीट में भूषण ने कहा था कि 'ऐसे समय में 'जब नागरिकों को न्याय तक पहुँचने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित करते हुए वह सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन मोड में रखते हैं, चीफ़ जस्टिस ने हेलमेट या फ़ेस मास्क नहीं पहना।'
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