राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट की लड़ाई एक बार फिर तेज हो सकती है। सचिन पायलट ने बुधवार को अशोक गहलोत पर गुलाम नबी आजाद वाला ‘कटाक्ष’ कर चिंगारी को सुलगाने की कोशिश की है। ऐसे वक्त में जब कांग्रेस लगातार मिल रही हार से हताश और निराश है और राहुल गांधी पार्टी को इस निराशा से बाहर निकालने के लिए और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं, पायलट का बयान पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
क्या है मामला?
राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने बुधवार को पत्रकारों से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह अशोक गहलोत की तारीफ की है वह दिलचस्प घटनाक्रम है क्योंकि इसी तरह प्रधानमंत्री ने संसद में कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद की तारीफ की थी और उसके बाद क्या हुआ, यह हम सब जानते हैं। पायलट ने कहा कि इस बात को किसी को भी हल्के में नहीं लेना चाहिए।
पायलट की उम्र और सियासी तजुर्बा हालांकि कम है लेकिन वह भारत सरकार में मंत्री रहने के साथ ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्य के उप मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। राजनीति उन्हें विरासत में मिली है और वह दो दशक राजनीति में गुजार चुके हैं, इसलिए अशोक गहलोत के बारे में दिए गए उनके इस बयान को अचानक या बिना सोचे-समझे दिया हुआ बयान नहीं माना जा सकता।
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लेकिन सचिन पायलट जल्दी मुख्यमंत्री बनने की अपनी ख्वाहिश के चलते जुलाई 2020 में अपने लगभग 15-20 विधायकों को साथ लेकर गुड़गांव के मानेसर में स्थित एक रिसॉर्ट में चले गए। गहलोत पायलट की ऐसी ही किसी गलती के इंतजार में थे और उन्हें पायलट पर हमला करने का मौका मिल गया।
गहलोत ने उस दौरान खुलकर पायलट को नकारा, निकम्मा कहा और दोनों नेताओं की लड़ाई की वजह से कांग्रेस की अच्छी-खासी फजीहत हुई थी। तब कांग्रेस हाईकमान ने जैसे-तैसे सचिन पायलट को मनाया था और उसके बाद दोनों गुटों के बीच हालात शीत युद्ध वाले ही रहे। कांग्रेस हाईकमान के कहने पर सचिन पायलट के समर्थक 5 विधायकों को गहलोत सरकार में नवंबर, 2021 में मंत्री बनाया गया था लेकिन पायलट के समर्थक लगातार उनके नेता को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग उठाते रहे।
सितंबर का घटनाक्रम
इस साल सितंबर में कांग्रेस में ऐसा घटनाक्रम हुआ जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था। बतौर पर्यवेक्षक विधायक दल की बैठक लेने जयपुर पहुंचे मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन की जबरदस्त किरकिरी हुई थी जब अशोक गहलोत के समर्थक विधायक जयपुर में बुलाई गई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नहीं पहुंचे थे।
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इन विधायकों ने बैठक में पहुंचने के बजाय कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर बैठक की थी और फिर स्पीकर सीपी जोशी को अपने इस्तीफ़े सौंप दिए थे। ऐसे विधायकों की संख्या 100 के आसपास बताई गई थी।
इस बगावत को कांग्रेस नेतृत्व को चुनौती माना गया था और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से इसके लिए माफी भी मांगी थी लेकिन सवाल फिर वही आकर खड़ा हो गया था कि राजस्थान के सियासी संकट का हल कैसे निकलेगा।
गहलोत के समर्थक विधायक लगातार कहते रहे हैं कि साल 2020 में बगावत करने वाले किसी भी विधायक को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए तो ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व क्या रास्ता निकालेगा, यह कहना मुश्किल है।
गहलोत के साथ हैं अधिकतर विधायक
मल्लिकार्जुन खड़गे कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं और उनके सामने गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के अलावा राजस्थान में पिछले 3 साल से चल रहे इस सियासी संकट को सुलझाना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। कहा जाता है कि पार्टी नेतृत्व ने सचिन पायलट को भरोसा दिया था कि उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के लिए ऐसा कर पाना बेहद मुश्किल है क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस के 108 विधायकों में से लगभग 90 विधायक अशोक गहलोत के साथ हैं।
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सितंबर के सियासी घटनाक्रम के बाद शायद सचिन पायलट को इस बात का भरोसा था कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद पार्टी राजस्थान को लेकर फैसला करेगी इसलिए कुछ दिन के इंतजार के बाद ही उन्होंने एक बड़ा बयान गहलोत को लेकर दे दिया है। ऐसा साफ दिख रहा है कि वह अब इस मामले में समाधान चाहते हैं लेकिन कांग्रेस नेतृत्व भी जानता है कि पायलट के नाम पर गहलोत समर्थक लगभग 90 विधायकों को राजी कर पाना बेहद टेढ़ी खीर है।
अगर पायलट के इस बयान को लेकर गहलोत और पायलट खेमों में आपसी बयानबाजी शुरू हो गई तो इससे एक बार फिर कांग्रेस की वैसी ही फजीहत हो सकती है जैसी साल 2020 में हुई थी।
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लड़ाई के चलते पंजाब खोया
सीधे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट बीते वक्त में हुई गलतियों से सीखने के लिए तैयार नहीं हैं और भारत जोड़ो यात्रा के जरिए सोशल मीडिया, टीवी चैनलों, अखबारों में जिस तरह कांग्रेस एक बार फिर एकजुट होती हुई दिख रही है, इन दोनों नेताओं की लड़ाई के कारण इस यात्रा को मिल रही लोकप्रियता को नुकसान पहुंच सकता है। क्योंकि ऐसी स्थिति में बीजेपी और कांग्रेस के आलोचक उस पर राजस्थान के संकट को हल न कर पाने के लिए हमला करेंगे। बताना होगा कि नेताओं की ऐसी ही लड़ाई की वजह से कांग्रेस को पंजाब खोना पड़ा था।
देखना होगा कि कांग्रेस नेतृत्व अनुशासन का डंडा चलाकर क्या गहलोत और पायलट खेमों को उनकी हद में रखेगा या एक बार फिर ये नेता खुलकर लड़ाई लड़ेंगे और राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की संभावनाओं को कमजोर कर देंगे।
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